बस में : एक
राजेश उत्साही
गुलमोहर
गुलमोहर
महिला सीटों पर जमे, मुस्टंडे दुष्ट लबार |
इसीलिए कर न सके, नारी कुछ प्रतिकार |
इसीलिए कर न सके, नारी कुछ प्रतिकार |
नारी कुछ प्रतिकार, ज़माना वो आयेगा |
जाय जमाना भूल, नहीं पछता पायेगा |
रविकर हक़ लो छीन, साथ है मेरा पहिला |
बढ़ो करो इन्साफ, अकेली अब न महिला ||
प्रतापगढ़ की रिपोर्ट -
सच्चित-सचिन
हद दर्जे की दरिंदगी, कई दिनों तक रेप |
मारे कन्या कापुरुष, जाय मनुजता झेंप |
मानवता जाती झेंप, प्रशासन दु:शासन है |
भारी वहाँ तनाव, जले फिर घर आँगन है |
मारे कन्या कापुरुष, जाय मनुजता झेंप |
भारी वहाँ तनाव, जले फिर घर आँगन है |
मुवावजा का खेल, करे शासन मनमानी |
निर्दोषों को जेल, हँसी बाहर शैतानी ||
प्रेमचन्द : संघर्षमय जीवन
मनोज कुमारराजभाषा हिंदी
कुआं खोद पीते रहे, जी ते लिखते लेख |
प्रेम-चन्द आदर्श मम, खींची लम्बी रेख |
खींची लम्बी रेख, जन्म का महिना पावन |
प्रस्तुत करें मनोज, कई रचना मनभावन |
मर्यादा सप्त-सरोज, हंस गोदान माधुरी |
कर्मठ छप्पन साल, उम्र में सांस आखिरी ||
Purchase Rs.20 Lakh Car from taxpayers Money UP CM Akhilesh Yadav tells to 403 MLAs
SM at From Politics To Fashionमाल हमारे बाप का, तेरा क्या है बोल ?
वाहन-चोरी का खतम, हुआ पुराना रोल |
हुआ पुराना रोल, समय पब्लिक की सेवा |
सेवा कर दिल खोल, तभी तो खाए मेवा |
पोलिटिक्स की ट्रिक्स, नहीं समझो बे मारे |
चाचा ताऊ सकल, मुलायम बाप हमारे | |
महंगाई की तपिश और मॉनसून के नखरे
खेती कर मैदान में, रोटी कठिन जुहात |
इक कपडा इक कोठरी, कृषक देश कहलात |
कृषक देश कहलात, मार मंहगाई डारे |
इसीलिए तो आज, युवा क्रिकेट पर वारे |
लाखों का मैदान, कराता वारे न्यारे |
युवा वर्ग मस्तान, जाय क्यूँ खेत किनारे ||
कान खोलकर सुन रहा, बिरादरी की बात |
हुक्का-पानी बंद हो, सुन कविवर अभिजात |
हुक्का-पानी बंद हो, सुन कविवर अभिजात |
सुन कविवर अभिजात, बेच जीवन भर भाषण |
सोनी माया बोथ, हमेशा ली प्रीकाशन |
जाती यू पी हार, हकाले भरी दुपहरी |
इसीलिए अविनाश, कवि संग लेते तफरी ||
सूरज की साजिश !
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
बैसवारी baiswari
दोहा दोहाई भरे, धरे नहीं अब धीर |
मेघावरि न शोभते, बिन बरसाये नीर ||
सुखा सुखा के तन-बदन, सारा रक्त निचोड़ |
घड़े भरे ले घूमते, देंगे रविकर फोड़ ||
रविकर खान अवैध, माफिया कई खानते
खान खानते खामखा, खालिस है खटराग ।
जान जाय जोखिम जबर, झरिया झन्झट आग ।
झरिया झन्झट आग, मुहाना बंद पड़ा है ।
खनिकों जाओ जाग, उधर यमदूत खड़ा है |
रविकर खान अवैध, माफिया कई खानते |
जाय आम इंसान, जान से खूब जानते |
कोयला-खदान की व्यथा...सही कहा है !
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteक्या बात है भाई-
Deleteआज सब तरफ खान खान ही गूंज रहा है -
यह देखिये-
http://allindiabloggersassociation.blogspot.in/
Deleteमुझे पहचानो
देखो मैं हूँ कौन
आ रहा हूँ पलट के
मैं हूँ सलीम ख़ान, ख़ान, ख़ान....!
बहुत बडि़या खोदा है खान को ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteरविकर खान अवैध, माफिया कई खानते |
ReplyDeleteजाय आम इंसान, जान से खूब जानते
इनकी व्यथा कों समझा और जाना है आपने ...
सभी छंद कमाल के लिखे हैं भाई जी ...
खेती कर मैदान में, रोटी कठिन जुहात |
ReplyDeleteइक कपडा इक कोठरी, कृषक देश कहलात |
शानदार प्रस्तुति व्यापक कलेवर लिए प्रेमचन्द से लिखाड़ी गधे तक .
आज आपकी कुंडली में हम भी आए हैं
ReplyDeleteऔर आप तो चहुं ओर बादल से छाए हैं
बहुत सुन्दर , बहुत बढ़िया ..
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