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'आहुति'
तुम कहो तो....!!!
उद्धव लेकर चल पड़े, रो के रोके गोपि ।
मथुरा की धुन में किशन, झिड़के करके कोपि ।
झिड़के करके कोपि, सयानी गोपी बोली ।
शब्द रंग कुछ ख़्वाब, हस्त-रेखाएँ खोली ।
लम्हे रखी संजोय, बनाई राहें रविकर ।
कहिये तो हम चलें, चले ज्यों उद्धव लेकर ।।
पा जी राजी तब हुवे, समझ सके जब फिल्म ।
आठ दिनों तक था नहीं, घटना का भी इल्म ।
घटना का भी इल्म, कराना था एडमीशन ।
नातिन को नर्सरी, और राहुल को ट्यूशन ।
कोई भी इस्कूल, नहीं ना दिग्गी राजी ।
रहा इधर मशगूल, उधर सिर काटे पाजी ।।
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काली-कलुषित नजर से, रहे सुरक्षित नारि | बने सुरक्षित तंत्र अब, धरे ध्यान परिवारि | धरे ध्यान परिवारि, विसारो पिछली बातें | दुर्घटना से सीख, परख ले रिश्ते नाते | ले उत्तर जह खोज, बनी हर नारि सवाली | अगर करोगे देर, बनेगी ज्वाला काली || |
अतिश्योक्ति है जुबाँ पर, शहजादा अंदाज | शहजादा अंदाज, बड़ा शातिर यह नेता | जन्मसिद्ध अधिकार, डोर सत्ता की लेता | लेकिन घोड़े सभी, नहीं पाले है काबुल | क्रिकेट में भी गधे, ठीक तो है ना राहुल || |
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न्यूज चैनलों में तन गए तोप !
महेन्द्र श्रीवास्तव
चै-चै चैनल पर शुरू, कमर्शियल के संग | सुषमा ने भर ही दिया, जन-गन-मन में जंग | जन-गन-मन को जंग, रंग में आया भारत | लेकिन सत्ताधीश, बैठ के रहे विचारत | परेशान उत पाक, विपक्षी कूचें धै धै | है आतंकी धाक, इधर चैनल की चै चै || |
बहुत सुन्दर लिक्स..मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार..
ReplyDeleteबढिया, सभी लिंक्स एक से बढकर एक
ReplyDeleteमुझे शामिल करने के लिए आभार
सुन्दर प्रस्तुति | शुभकामनायें हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteसार्थक और सटीक लेखन!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!