"धूप ज़रा मुझ तक आने दो" (चर्चा मंच-१११६)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
चर्चामंच -
सुन्दर चर्चा-मंच का, गुरुवर श्री गणेश |
अति उपयोगी लिंक से, जागृति होता देश | जागृति होता देश, केश अब फास्ट ट्रैक पर | दे सटीक सन्देश, देह का करिए आदर | शाश्वत नैतिक मूल्य, सीख उच्छ्रिन्खल भोगी | फांसी का कानून, अन्यथा अति उपयोगी || |
फुर्सत
रचना दीक्षित
कृष्णा की डोरी जटिल, बाँध गया मन मोर ।
ज्यों ज्यों जूझूँ गाँठ से, त्यों त्यों उलझे डोर ।।
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दूध की धुली नारियाँ -
सच्चित-सचिन
लज्जा की प्रतिमूर्ति को, मिला नपुंसक नाथ |
काम वासना के लिए, क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ ? क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ, उसे भी ज्वर चढ़ता है | जो भी हत्थे चढ़े, सहारा बन बढ़ता है | माने रविकर पक्ष, बिगाड़े पर क्या काकी ? फ़ोकट में दे पाठ, बात समझो लज्जा की || |
Dr (Miss) Sharad Singh
लक्ष्मण रेखा खींच के, जाय बहाना पाय ।
खून बहाना लूटना, दे मरजाद मिटाय ।
दे मरजाद मिटाय, सदी इक्कीस आ गई ।
किन्तु सोच उन्नीस, बढ़ी है नीच अधमई ।
पुरुषों के कुविचार, जले पर केवल रावण।
रेखा चलूं नकार, पुरुष भव खींचा, लक्ष्मण ।
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"रोज-रोज ही गीत नया है गाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
गा गा कर जिंदगी बिताना |
फिर भी दुनिया मारे ताना | अश्रु बहाना तन तड़पाना- सम्मुख आये, करे बहाना || |
उम्दा !!
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .
ReplyDeleteबढिया दिल्लगी सर
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति है .
ReplyDeleteउनको बताना है ,
रोज़ यहाँ आना है .
डॉ साहब बहुत बढ़िया कही है यह शहर के साथ संवाद है शहर का परिचय पत्र हाई आधार कार्ड है .सुमधुर तराना है यह गीत ,बदलाव का फसाना है .
ReplyDeleteगंगा-गइया-मइया,
सबको हमने है बिसराया.
दूध-दही के बदले में,
मदिरा का प्याला भाया,
दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
शुरू कर दिया खाना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
बहुत बढ़िया सेतु समायोजन एवं प्रस्तुति .हाँ पूरे वजन के साथ कहता हूँ यह बात :संविधान की प्रस्तावना का पहला वाक्य ही गलत है मिथ है यथार्थ नहीं .
ReplyDeleteमिथ :इंडिया डेट इज भारत
यथार्थ :इंडिया इज इंडिया ,भारत इज भारत
इंडिया एक विकसित स्टेट है भारत विकास शील बनाना स्टेट है .
SATURDAY, 5 JANUARY 2013
ज्यों ज्यों जूझूँ गाँठ से, त्यों त्यों उलझे डोर -
"धूप ज़रा मुझ तक आने दो" (चर्चा मंच-१११६)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
चर्चामंच -
सुन्दर चर्चा-मंच का, गुरुवर श्री गणेश |
अति उपयोगी लिंक से, जागृति होता देश |
जागृति होता देश, केश अब फास्ट ट्रैक पर |
दे सटीक सन्देश, देह का करिए आदर |
शाश्वत नैतिक मूल्य, सीख उच्छ्रिन्खल भोगी |
फांसी का कानून, अन्यथा अति उपयोगी ||
डॉ साहब बहुत बढ़िया कही है यह शहर के साथ संवाद है शहर का परिचय पत्र हाई आधार कार्ड है .सुमधुर तराना है यह गीत ,बदलाव का फसाना है .
ReplyDeleteगंगा-गइया-मइया,
सबको हमने है बिसराया.
दूध-दही के बदले में,
मदिरा का प्याला भाया,
दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
शुरू कर दिया खाना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
बहुत बढ़िया सेतु समायोजन एवं प्रस्तुति .हाँ पूरे वजन के साथ कहता हूँ यह बात :संविधान की प्रस्तावना का पहला वाक्य ही गलत है मिथ है यथार्थ नहीं .
ReplyDeleteमिथ :इंडिया डेट इज भारत
यथार्थ :इंडिया इज इंडिया ,भारत इज भारत
इंडिया एक विकसित स्टेट है भारत विकास शील बनाना स्टेट है .
टिप्पणियाँ बहुत सटीक की हैं आपने!
ReplyDeleteआभार!
सटीक सुंदर टिप्पणी,,,,
ReplyDeleterecent post: वह सुनयना थी,
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteउम्दा रचनाओं पर उम्दा टिप्पणियाँ |
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