Saturday, 5 January 2013

ज्यों ज्यों जूझूँ गाँठ से, त्यों त्यों उलझे डोर -



"धूप ज़रा मुझ तक आने दो" (चर्चा मंच-१११६)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

सुन्दर चर्चा-मंच का, गुरुवर श्री गणेश |
अति उपयोगी लिंक से, जागृति होता देश |
जागृति होता देश, केश अब फास्ट ट्रैक पर |
दे सटीक सन्देश, देह का करिए आदर |
शाश्वत नैतिक मूल्य, सीख उच्छ्रिन्खल भोगी |
फांसी का कानून, अन्यथा अति उपयोगी ||


फुर्सत

रचना दीक्षित 

 कृष्णा की डोरी जटिल, बाँध गया मन मोर ।
ज्यों ज्यों जूझूँ गाँठ से, त्यों त्यों उलझे डोर ।।

दूध की धुली नारियाँ -

सच्चित-सचिन  

लज्जा की प्रतिमूर्ति को, मिला नपुंसक नाथ |
काम वासना के लिए, क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ ?

क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ, उसे भी ज्वर चढ़ता है |
जो भी हत्थे चढ़े, सहारा बन बढ़ता है |

माने रविकर पक्ष, बिगाड़े पर क्या काकी ?
फ़ोकट में दे पाठ, बात समझो लज्जा की ||

Dr (Miss) Sharad Singh 
लक्ष्मण रेखा खींच के, जाय बहाना पाय ।
खून बहाना लूटना, दे मरजाद मिटाय ।
दे मरजाद मिटाय, सदी इक्कीस आ गई ।
किन्तु सोच उन्नीस, बढ़ी है नीच अधमई ।
पुरुषों के कुविचार, जले पर केवल रावण।
 रेखा चलूं नकार, पुरुष भव खींचा, लक्ष्मण ।

"रोज-रोज ही गीत नया है गाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 
गा गा कर जिंदगी बिताना |
फिर भी दुनिया मारे ताना |
अश्रु बहाना तन तड़पाना-
सम्मुख आये, करे बहाना ||



12 comments:

  1. बढिया दिल्लगी सर

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  2. बढ़िया प्रस्तुति है .

    उनको बताना है ,

    रोज़ यहाँ आना है .

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  3. डॉ साहब बहुत बढ़िया कही है यह शहर के साथ संवाद है शहर का परिचय पत्र हाई आधार कार्ड है .सुमधुर तराना है यह गीत ,बदलाव का फसाना है .


    गंगा-गइया-मइया,
    सबको हमने है बिसराया.
    दूध-दही के बदले में,
    मदिरा का प्याला भाया,
    दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
    शुरू कर दिया खाना।
    नूतन के स्वागत-वन्दन में,
    डूबा नया जमाना।।

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया सेतु समायोजन एवं प्रस्तुति .हाँ पूरे वजन के साथ कहता हूँ यह बात :संविधान की प्रस्तावना का पहला वाक्य ही गलत है मिथ है यथार्थ नहीं .

    मिथ :इंडिया डेट इज भारत

    यथार्थ :इंडिया इज इंडिया ,भारत इज भारत

    इंडिया एक विकसित स्टेट है भारत विकास शील बनाना स्टेट है .


    SATURDAY, 5 JANUARY 2013

    ज्यों ज्यों जूझूँ गाँठ से, त्यों त्यों उलझे डोर -


    "धूप ज़रा मुझ तक आने दो" (चर्चा मंच-१११६)
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
    चर्चामंच -


    सुन्दर चर्चा-मंच का, गुरुवर श्री गणेश |
    अति उपयोगी लिंक से, जागृति होता देश |
    जागृति होता देश, केश अब फास्ट ट्रैक पर |
    दे सटीक सन्देश, देह का करिए आदर |
    शाश्वत नैतिक मूल्य, सीख उच्छ्रिन्खल भोगी |
    फांसी का कानून, अन्यथा अति उपयोगी ||

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  5. डॉ साहब बहुत बढ़िया कही है यह शहर के साथ संवाद है शहर का परिचय पत्र हाई आधार कार्ड है .सुमधुर तराना है यह गीत ,बदलाव का फसाना है .


    गंगा-गइया-मइया,
    सबको हमने है बिसराया.
    दूध-दही के बदले में,
    मदिरा का प्याला भाया,
    दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
    शुरू कर दिया खाना।
    नूतन के स्वागत-वन्दन में,
    डूबा नया जमाना।।

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  6. बहुत बढ़िया सेतु समायोजन एवं प्रस्तुति .हाँ पूरे वजन के साथ कहता हूँ यह बात :संविधान की प्रस्तावना का पहला वाक्य ही गलत है मिथ है यथार्थ नहीं .

    मिथ :इंडिया डेट इज भारत

    यथार्थ :इंडिया इज इंडिया ,भारत इज भारत

    इंडिया एक विकसित स्टेट है भारत विकास शील बनाना स्टेट है .

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  7. टिप्पणियाँ बहुत सटीक की हैं आपने!
    आभार!

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  8. उम्दा रचनाओं पर उम्दा टिप्पणियाँ |

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