"रोज-रोज ही गीत नया है गाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
गा गा कर जिंदगी बिताना |
फिर भी दुनिया मारे ताना |
अश्रु बहाना तन तड़पाना-
सम्मुख आये, करे बहाना ||
फिर भी दुनिया मारे ताना |
अश्रु बहाना तन तड़पाना-
सम्मुख आये, करे बहाना ||
मैं करूं क्या ....
Dr (Miss) Sharad Singh
लक्ष्मण रेखा खींच के, जाय बहाना पाय ।
खून बहाना लूटना, दे मरजाद मिटाय ।
दे मरजाद मिटाय, सदी इक्कीस आ गई ।
किन्तु सोच उन्नीस, बढ़ी है नीच अधमई ।
पुरुषों के कुविचार, जले पर केवल रावण।
रेखा चलूं नकार, पुरुष भव खींचा, लक्ष्मण ।
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फर्क है भारत और इंडिया में.,रील लाइफ़ और रीअल लाइफ़ में
Virendra Kumar Sharma
बदले क्यूँ कन्या कुशल, खुद के क्रिया कलाप ?
मचे इण्डिया में ग़दर, मदर इण्डिया काँप ।
मदर इण्डिया काँप, हाँफती रहती दिनभर ।
शाम तसल्ली-बख्स , मस्तियाँ मारे मनभर ।
अघ-पुरुषों धिक्कार, इरादे कितने गँदले ।
बराबरी अधिकार, सोच वो ही क्यूँ बदले ??
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रचते रविकर टीप छंद सहज ही तत्क्षण
ReplyDeleteश्रद्धांजलि, रील लाइफ या रेखा लक्ष्मण।
वाह...!
ReplyDeleteआभार रविकर जी!