Virendra Kumar Sharma
स्वाद अगर अवसाद दे, करिए उसको बाद |
छोड़ हटो मिष्ठान का, यह दारुण उन्माद | यह दारुण उन्माद, खाद्य से इसे हटाओ | भाँति-भाँति के रोग, देह से दूर भगाओ | तली-भुनी नमकीन, घटाओ जरा मसाला | रहो कार्य में लीन, देख कर गटक निवाला || |
भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र क्यों बार बार विफल हो जाता है !!
(पूरण खंडेलवाल)
सीमा पर उत्पात हो, शत्रु देश का हाथ ।
फेल खूफिया तंत्र है, कटते सैनिक माथ ।
कटते सैनिक माथ, रहे पर सत्ता सोई ।
रचि राखा जो राम, वही दुर्घटना होई ।
इत नक्सल आतंक, पुलिस का करती कीमा ।
पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा ।।
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भावनाओं से भरी गगरी(घड़ा) - आकाश कुमार
आकाश सिंह
शब्दों से आक्रोश को, व्यक्त करे आकाश । देश रसातल में धंसे, देख लाल की लाश । देख लाल की लाश, अनर्गल बकती सत्ता । लेकिन पाकी फांस, घुसे हरदम अलबत्ता । इत नक्सल दुर्दांत, उधर आतंकी पोसे । करिए अब तो क्रान्ति, भावना से शब्दों से ।। |
जस्टिस वर्मा को मिले, भाँति-भाँति के मेल ।
रेपिस्टों की सजा पर, दी दादी भी ठेल । दी दादी भी ठेल, कत्तई मत अजमाना । सही सजा है किन्तु, जमाना मारे ताना । जो भी औरत मर्द, रेप सम करे अधर्मा । चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा ।। |
Thursday, 10 January 2013पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस-
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पैमाने में भरकर अलसाये दर्द को, इस तरह न छलकाया करो...
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंतर्मन में ऐक्य है, तनातनी तन माय |
प्यारी सी यह गजल दे, फिर से आग लगाय | फिर से आग लगाय, बुलाना नहीं गवारा | रहा खुद-ब-खुद धाय, छोड़ के धंधा सारा | आँखों में इनकार, मगर सुरसुरी बदन में | रविकर कर बर्दाश्त, आज जो अंतर्मन में || |
सत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत | बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है | फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है | कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था | मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा || |
आपकी टिपण्णीयों के साथ लिंकों का संयोजन सोने पर सुहागा !!
ReplyDeleteबेहतरीन लिंक्स
ReplyDeleteये हरामखोरकायर माओवादी, नक्सली तो इन पाकिस्तानियों से भी बराबर और जंगली हैं !
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ReplyDeleteभारतीय ख़ुफ़िया तंत्र क्यों बार बार विफल हो जाता है !!
(पूरण खंडेलवाल)
शंखनाद
सीमा पर उत्पात हो, शत्रु देश का हाथ ।
फेल खूफिया तंत्र है, कटते सैनिक माथ ।
कटते सैनिक माथ, रहे पर सत्ता सोई ।
रचि राखा जो राम, वही दुर्घटना होई ।
इत नक्सल आतंक, पुलिस का करती कीमा ।
पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा ।।
भ्रष्ट व्यवस्था ,ध्वस्त प्रशासन ,निष्फल हुई सारी कुर्बानी ,
भीड़ प्रदर्शन ,पुलिस के डंडे ,दिल्ली की अब यही कहानी .
बहुत बढ़िया सामयिक चिंतन से भरी प्रस्तुति हेतु आभार!
ReplyDeleteआपकी टिप्पणियां कमाल की होती हैं....उस पर लिंकों का संयोजन..बड़ा अच्छा लगता है। और हमारी रचना को जो अन्य भाव उभरकर आता है...बहुत खूब..आभार
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