Thursday, 10 January 2013

पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा-



Virendra Kumar Sharma 
स्वाद अगर अवसाद दे, करिए उसको बाद |
छोड़ हटो मिष्ठान का, यह दारुण उन्माद |
यह दारुण उन्माद, खाद्य से इसे हटाओ |
भाँति-भाँति के रोग, देह से दूर भगाओ |
तली-भुनी नमकीन, घटाओ जरा मसाला |
रहो कार्य में लीन, देख कर गटक निवाला ||

भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र क्यों बार बार विफल हो जाता है !!

  (पूरण खंडेलवाल) 
सीमा पर उत्पात हो, शत्रु देश का हाथ ।
फेल खूफिया तंत्र है, कटते सैनिक माथ ।
कटते सैनिक माथ, रहे पर सत्ता सोई ।
रचि राखा जो राम,  वही दुर्घटना होई ।
इत नक्सल आतंक, पुलिस का करती कीमा ।
पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा ।। 

भावनाओं से भरी गगरी(घड़ा) - आकाश कुमार


आकाश सिंह

शब्दों से आक्रोश को, व्यक्त करे आकाश ।
देश रसातल में धंसे, देख लाल की लाश ।
देख लाल की लाश, अनर्गल बकती सत्ता ।
लेकिन पाकी फांस, घुसे हरदम अलबत्ता ।
इत नक्सल दुर्दांत, उधर आतंकी पोसे ।
करिए अब तो क्रान्ति, भावना से शब्दों से ।।

जस्टिस वर्मा को मिले, भाँति-भाँति के मेल । 
रेपिस्टों की सजा पर, दी दादी भी ठेल ।  

दी दादी भी ठेल, कत्तई मत अजमाना ।
 सही सजा है किन्तु, जमाना मारे ताना ।


जो भी औरत मर्द, रेप सम करे अधर्मा ।  
 चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा ।।

Thursday, 10 January 2013


पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस-

Thursday, 10 January 2013


नक्सल पीछे कहाँ, तनिक आगे है पाकी

Three killed in Naxal attack on police van in Jharkhand

पाकी सिर काटे अगर, व्यक्त सही आक्रोश ।
मरे पुलिस के पेट में, नक्सल दे बम खोंस ।
नक्सल दे बम खोंस, आधुनिक विस्फोटक से ।
करे धमाका ठोस, दुबारा पूरे हक़ से ।
अन्दर बाहर शत्रु, बताओ अब क्या बाकी ।
नक्सल पीछे कहाँ, तनिक आगे है पाकी ।।
 

Tuesday, 8 January 2013



  बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी

पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस ।
उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी ।
सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी ।
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी ।
सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।। 



पैमाने में भरकर अलसाये दर्द को, इस तरह न छलकाया करो...


पी.सी.गोदियाल "परचेत"  


अंतर्मन में ऐक्य है, तनातनी तन माय |
प्यारी सी यह गजल दे, फिर से आग लगाय |
फिर से आग लगाय, बुलाना नहीं गवारा |
रहा खुद-ब-खुद धाय, छोड़ के धंधा सारा |
आँखों में इनकार, मगर सुरसुरी बदन में |
रविकर कर बर्दाश्त, आज जो अंतर्मन में ||

 SADA 
सत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत |
बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है |
फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है |
कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था |
मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा ||

6 comments:

  1. आपकी टिपण्णीयों के साथ लिंकों का संयोजन सोने पर सुहागा !!

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  2. बेहतरीन लिंक्‍स

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  3. ये हरामखोरकायर माओवादी, नक्सली तो इन पाकिस्तानियों से भी बराबर और जंगली हैं !

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  4. भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र क्यों बार बार विफल हो जाता है !!
    (पूरण खंडेलवाल)
    शंखनाद
    सीमा पर उत्पात हो, शत्रु देश का हाथ ।
    फेल खूफिया तंत्र है, कटते सैनिक माथ ।
    कटते सैनिक माथ, रहे पर सत्ता सोई ।
    रचि राखा जो राम, वही दुर्घटना होई ।
    इत नक्सल आतंक, पुलिस का करती कीमा ।
    पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा ।।

    भ्रष्ट व्यवस्था ,ध्वस्त प्रशासन ,निष्फल हुई सारी कुर्बानी ,

    भीड़ प्रदर्शन ,पुलिस के डंडे ,दिल्ली की अब यही कहानी .

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  5. बहुत बढ़िया सामयिक चिंतन से भरी प्रस्तुति हेतु आभार!

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  6. आपकी टिप्‍पणि‍यां कमाल की होती हैं....उस पर लिंकों का संयोजन..बड़ा अच्‍छा लगता है। और हमारी रचना को जो अन्‍य भाव उभरकर आता है...बहुत खूब..आभार

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