पूरण खण्डेलवाल
शंखनाद -
अंधी देवी न्याय की, चालें डंडी-मार |
पलड़े में सौ छेद हैं, डोरी से व्यभिचार | डोरी से व्यभिचार, तराजू बबली-बंटी | देता जुल्म नकार, बजे खतरे की घंटी | अमरीका इंग्लैण्ड, जुर्म का करें आकलन | कड़ी सजा दें देश, जेल हो उसे आमरण || |
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।
बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
हम में से हर एक को, लेना निर्णय शख्त | लेना निर्णय शख्त, हवा बदलाव बहायें | सदाचार सदनीति, प्रेम-आदर्श निभायें | पर सत्ता कमबख्त, लगा बैठी है पहरा | तन मन दें धन-रक्त, छ्टे तब गुरुवर कुंहरा । |
पैंट-शर्ट में पुरुष के, हमें दीखता दोष ।
अंत: वस्त्रों में दिखे, ज्यादा जोश खरोश ।
ज्यादा जोश खरोश, पहन अब वही जाँघिया ।
धोती-कुरता झाड, पजामा बनी धारियां ।
सात्विक भोजन होय, मूक फ़िल्में भी त्यागो ।
बदलो अपने ढंग, गोलियां यूँ मत दागो ।।
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रहम करो रहमान पर, रब का बन्दा नेक ।
बादशाह की रोटियां, रहा आग पर सेंक । रहा आग पर सेंक, बिचारा बड़ा अभागा । गौरी छिब्बर खान, किरण जस गोली दागा । सौ करोड़ का प्यार, कलंकित आज करे है । हाफिज तो मक्कार, हिफाजत के नखरे हैं ।। |
ख्वाहिश तेरी गर दिली, नहीं लगाओ अक्ल |
नहीं लगाओ अक्ल, शक्ल के बड़े पुजारी |
जाय बसों तुम पाक, भरे हैं वहाँ फरारी |
कुछ दिन लोगे झेल, किन्तु जब समझो पूरा |
आ जाना इस देश, काम मत छोड़ अधूरा ||
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अंडे से बढ़ता नहीं, दिल दिमाग का दर्द |
डंडे से बस में रहे, पर्दा बर्दा मर्द | पर्दा बर्दा मर्द, लीक से नहीं भागता | करे बयानी फर्द, होश में रहे जागता | रविकर हो भयभीत, पास आता जो सन्डे | दिवस करूँ व्यतीत, देखते डंडे अंडे || |
Johny Samajhdar
करे चिरौरी रात-दिन, गिन गिन सौ सौ बार ।
लेकिन कवि के झूठ पर, नहीं करे एतबार ।
नहीं करे एतबार, बड़ी चालाक प्रियतमा ।
पर मानूँ क्यूँ हार, बड़ा जिद्दी है बलमा ।
करूँ फैसला आज, मंगाऊँ मौरा-मौरी ।
होंगे मंगल काज, करूँ ना और चिरौरी ।।
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Virendra Kumar Sharma
दिग्गी तो दरअसल है, सत्ता-शत्रु विषाणु ।
कांग्रेस से है चिढ़ा, पटके बम परमाणु ।
पटके बम परमाणु, मिटाना हरदम चाहे ।
राज-पुत्र दोगला, भूत-भटके चौराहे ।
राहुल का यह कोच, टिप्पणी करता भद्दी ।
पावर से है दूर, मिली कबसे नहिं गद्दी ।।
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नारा ढीला हो गया, निन्यानवे बटेर |
पहुँचायें सत्ता सही, चाहे देर सवेर | चाहे देर सवेर, गरीबी रेखा वालों | फँसता मध्यम वर्ग, साथ अब इन्हें बुला लो | मँहगाई की मार, टैक्स ने भी संहारा | लाल-कार्ड बनवाय, लगायें हम भी नारा । |
घुन लगी न्याय व्यवस्था है, जभी तो हर किसी दरिन्दे के हौंसले बुलंद है !
ReplyDeleteआभार !!
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी और सटीक टिप्पणियां...आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और सटीक टिप्पणियां...आभार
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ReplyDelete"हद हो गई! इससे ज्यादा दुःख भरी खबर पिछले एक अरसे से मैंने नहीं सुनी कि दिल्ली दुष्कर्म का छठा आरोपी नाबालिग करार दिए जाने के कारण जल्द ही रिहा हो जाएगा।
ReplyDeleteमतलब 18 साल होने से एक दिन पहले तक हमारा कानून उसे बल्कि उसके जैसे अन्यों को भी केवल एक दूध पीता बच्चा ही मानता है, जिससे कोई अपराध हो नहीं सकता और अगर हो गया है तो उन्हें सुधरने के लिए वापिस समाज में भेज दिया जाना चाहिए। ऐसे लोगों के किसी भी तरह के जघन्य अपराध करने पर भी बहुत थोड़ी सी ही सजा दी जाती है, मतलब सज़ा ना देने के बराबर।
इस कानून को बदलने के लिए इन्साफ मिलने तक आन्दोलन चलाया जाना चाहिए
सुंदर रचनाएं।
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