जस्टिस वर्मा को मिले, भाँति-भाँति के मेल ।
रेपिस्टों की सजा पर, दी दादी भी ठेल । दी दादी भी ठेल, कत्तई मत अजमाना । सही सजा है किन्तु, जमाना मारे ताना । जो भी औरत मर्द, रेप सम करे अधर्मा । चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा ।। मर्यादा का ले नाम मत अपना पल्ला झाड़ पुरुष !
डॉ शिखा कौशिक ''नूतन ''
पुत्रों पर दिखला रहीं, माताएं जब लाड़ | पुत्री पर प्रतिबन्ध से, करती क्यों खिलवाड़ | करती क्यों खिलवाड़, हमें है सोच बदलनी | भेदभाव यह छोड़, पुत्र सम पुत्री करनी | होकर के गंभीर, ध्यान देना है मित्रों | अपनी चाल सुधार, बाप बनना है पुत्रों | |
सत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत | बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है | फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है | कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था | मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा || |
पुरुषों से दोस्ती करें अथवा ना करें ?
आशा मिलती राम में, नर नारी संजोग |
आये आसाराम से, जाने कितने लोग | जाने कितने लोग, भोग की गलत व्याख्या | नित आडम्बर ढोंग, बड़ी भारी है संख्या | नारी नहिं गलनीय, नहीं वह मीठ बताशा | सुता सृष्टि माँ बहन, सदा दुनिया की आशा || |
पैमाने में भरकर अलसाये दर्द को, इस तरह न छलकाया करो...
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंतर्मन में ऐक्य है, तनातनी तन माय |
प्यारी सी यह गजल दे, फिर से आग लगाय | फिर से आग लगाय, बुलाना नहीं गवारा | रहा खुद-ब-खुद धाय, छोड़ के धंधा सारा | आँखों में इनकार, मगर सुरसुरी बदन में | रविकर कर बर्दाश्त, आज जो अंतर्मन में || |
Virendra Kumar Sharma
स्वाद अगर अवसाद दे, करिए उसको बाद |छोड़ हटो मिष्ठान का, यह दारुण उन्माद | यह दारुण उन्माद, खाद्य से इसे हटाओ | भाँति-भाँति के रोग, देह से दूर भगाओ | तली-भुनी नमकीन, घटाओ जरा मसाला | रहो कार्य में लीन, देख कर गटक निवाला || |
भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र क्यों बार बार विफल हो जाता है !!
(पूरण खंडेलवाल)
सीमा पर उत्पात हो, शत्रु देश का हाथ ।
फेल खूफिया तंत्र है, कटते सैनिक माथ ।
कटते सैनिक माथ, रहे पर सत्ता सोई ।
रचि राखा जो राम, वही दुर्घटना होई ।
इत नक्सल आतंक, पुलिस का करती कीमा ।
पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा ।।
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भावनाओं से भरी गगरी(घड़ा) - आकाश कुमार
आकाश सिंह
शब्दों से आक्रोश को, व्यक्त करे आकाश । देश रसातल में धंसे, देख लाल की लाश । देख लाल की लाश, अनर्गल बकती सत्ता । लेकिन पाकी फांस, घुसे हरदम अलबत्ता । इत नक्सल दुर्दांत, उधर आतंकी पोसे । करिए अब तो क्रान्ति, भावना से शब्दों से ।। |
आभार आपका
ReplyDeleteसादर
एक बार पुन: आभार आपका रविकर जी ! एक टिपण्णी चर्चा मंच पर भी डाली थी शायद स्पैम खा गया !
ReplyDeleteहद है-
ReplyDeleteजस्टीस वरमा को यह भी बतलाओ-
बालक का सेक्स चेंज करा के उसे बाल सुधार गृह में रखवाओ-
जाडू -पोछा करवाओ-
लडको के लिए खाना बनवाओ-
और अगर कोई चाची हो तो सेक्स चेंज कर उसे नारी सुधार गृह में रखवाओ-