Thursday, 10 January 2013
Tuesday, 8 January 2013बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी
पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस ।
उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी ।
सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी ।
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी ।
सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।।
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चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा-
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ठण्ड माघ की बाघ, बढ़ा के रेल किराया-
मोहन बाबू मर्द, कभी काटी ना चुटकी-
दो दो पैसे में बटा, किम्मी किम्मी दर्द ।
तुम क्या जानो कीमतें, मोहन बाबू मर्द ।
मोहन बाबू मर्द, कभी काटी ना चुटकी ।
देह आज है जर्द, आत्मा अटकी भटकी ।
समय सुरक्षित रेल, बढ़ें सुविधाएं कैसे ?
रहे संपदा लूट, लूट अब दो दो पैसे ।।
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समय सुरक्षित रेल,बढ़ें सुविधाएं कैसे ?
ReplyDeleteरहे संपदा लूट, लूट अब दो दो पैसे ।।
सटीक प्रस्तुति,,बधाई रविकर जी,,,,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
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