तेरा अहसास.......
रश्मि शर्मा
बना बतंगड़ बात का, खुरच खुरच अहसास ।
वेग स्वांस-उच्छ्वास का, छुवे धरा आकाश ।
छुवे धरा आकाश, काश यह मौन सँदेशा ।
पहुंचे उनके देश, हलचलें-हाल हमेशा ।
स्वप्नों का संसार, लगता रहता लंगड़ ।
मिले तार बेतार, बने ना कभी बतंगड़ ।।
Images for red chillies in pictures - Report images
Virendra Kumar Sharma
तीखी तीखी मिर्चियाँ, *किरची ^किरच कृपाण ।
होती सेहतमंद पर, कहाँ प्राण का त्राण ।
कहाँ प्राण का त्राण, खांड कितनी भी फांको ।
चबवा देती चने, महोदय रविकर नाकों ।
हो जीना दुश्वार, दूसरे दिन तक चीखी ।
सूखी मिर्ची त्याग, हरी मिर्ची खा तीखी ।।
*रेशम का लच्छा ^ नोंकदार तलवार
हमारे युवा आधुनिक बनना चाहते हैं या फिर दिखना चाहते हैं !!
पूरण खण्डेलवाल
विज्ञापन मीडिया भी, औद्योगिक घरबार |
फिल्म कथानक खेल के, आयोजक सहकार |
आयोजक सहकार, अजब सा जोश भरे हैं |
अपने वश में नहीं, नशें में ही विचरे हैं |
युवा-वर्ग बेताब, उसे सब कुछ है पाना |
बहा रहा सैलाब, उखाड़े पैर जमाना ||
सर्ग-1
भाग-2
दशरथ बाल-कथा --
दोहा
इंदुमती के प्रेम में, भूपति अज महराज |
लम्पट विषयी जो हुए, झेले राज अकाज ||1||
घनाक्षरी
दीखते हैं मुझे दृश्य मनहर चमत्कारी
कुसुम कलिकाओं से वास तेरी आती है
कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर
प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है
देखूं शशि छबि भव्य निहारूं अंशु सूर्य की -
रंग-छटा उसमे भी तेरी ही दिखाती है
|
कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
तेरे रूप-धूप का ही सुयश फैलाती है ||
गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा, सह सुमंत बेकार |
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया दरबार ||2||
"हमारा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
शुद्ध हवा हितकर दवा, पादप के उपहार |
मानव जीवन लालची, हरपल रहा सँहार |
हरपल रहा सँहार, वार पर वार किये है |
काट रहा जो डाल, पैर वह वहीँ दिए है |
रे नादाँ इंसान, चेताये तुझको रविकर |
कर पौधों से प्यार, हवा होती है हितकर |
चश्मा
देवेन्द्र पाण्डेय
चश्में पर सबकी नजर, ज़र-जमीन असबाब |
चकाचौंध से त्रस्त है, रसम-चशम के ख़्वाब ||
तेरा अहसास.......
रश्मि शर्मा
बना बतंगड़ बात का, खुरच खुरच अहसास ।
वेग स्वांस-उच्छ्वास का, छुवे धरा आकाश ।
छुवे धरा आकाश, काश यह मौन सँदेशा ।
पहुंचे उनके देश, हलचलें-हाल हमेशा ।
स्वप्नों का संसार, लगता रहता लंगड़ ।
मिले तार बेतार, बने ना कभी बतंगड़ ।।
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Virendra Kumar Sharma
तीखी तीखी मिर्चियाँ, *किरची ^किरच कृपाण ।
होती सेहतमंद पर, कहाँ प्राण का त्राण ।
कहाँ प्राण का त्राण, खांड कितनी भी फांको ।
चबवा देती चने, महोदय रविकर नाकों ।
हो जीना दुश्वार, दूसरे दिन तक चीखी ।
सूखी मिर्ची त्याग, हरी मिर्ची खा तीखी ।।
*रेशम का लच्छा ^ नोंकदार तलवार
हमारे युवा आधुनिक बनना चाहते हैं या फिर दिखना चाहते हैं !!
पूरण खण्डेलवाल
विज्ञापन मीडिया भी, औद्योगिक घरबार |
फिल्म कथानक खेल के, आयोजक सहकार |
आयोजक सहकार, अजब सा जोश भरे हैं |
अपने वश में नहीं, नशें में ही विचरे हैं |
युवा-वर्ग बेताब, उसे सब कुछ है पाना |
बहा रहा सैलाब, उखाड़े पैर जमाना ||
सर्ग-1
भाग-2
दशरथ बाल-कथा --
दोहा
इंदुमती के प्रेम में, भूपति अज महराज |
लम्पट विषयी जो हुए, झेले राज अकाज ||1||
घनाक्षरी
दीखते हैं मुझे दृश्य मनहर चमत्कारी
कुसुम कलिकाओं से वास तेरी आती है
कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर
प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है
देखूं शशि छबि भव्य निहारूं अंशु सूर्य की -
रंग-छटा उसमे भी तेरी ही दिखाती है |
कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
तेरे रूप-धूप का ही सुयश फैलाती है ||
दीखते हैं मुझे दृश्य मनहर चमत्कारी
कुसुम कलिकाओं से वास तेरी आती है
कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर
प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है
देखूं शशि छबि भव्य निहारूं अंशु सूर्य की -
रंग-छटा उसमे भी तेरी ही दिखाती है |
कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
तेरे रूप-धूप का ही सुयश फैलाती है ||
गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा, सह सुमंत बेकार |
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया दरबार ||2||
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया दरबार ||2||
"हमारा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
मानव जीवन लालची, हरपल रहा सँहार |
हरपल रहा सँहार, वार पर वार किये है |
काट रहा जो डाल, पैर वह वहीँ दिए है |
रे नादाँ इंसान, चेताये तुझको रविकर |
कर पौधों से प्यार, हवा होती है हितकर |
चश्मा
देवेन्द्र पाण्डेय
बहुत सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति!
ReplyDeleteहमारी रचना पर कुंडली तो पूरी नहीं लिखी आपने!
ReplyDeleteअरे वाह आपने तो बहुत सुन्दर कुण्डलिया रच दी मेरी पोस्ट पर!
ReplyDeleteआभार!
बढ़िया लिंक्स...
ReplyDeleteशानदार टिप्पणियों से सजाया है रविकर जी...
सादर
अनु
लाजवाब कुंडलियों के साथ उम्दा लिंक ,मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आभार !!
ReplyDeleteमिले तार बेतार, बने ना कभी बतंगड़....क्या बात है...हम तो कायल हो गए आपकी लेखनी के...धन्यवाद आपका
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ