Sunday, 6 January 2013

दे सटीक सन्देश, देह का करिए आदर




हर वाशिंदा मोहल्ले का,तबसे ही वक्त पर घर पहुँचने लगा है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

 दोष पड़ोसन का नहीं, बिगड़ा बड़ा पड़ोस |
अंधड़ आते इस कदर, रहे नहीं तब होश |

रहे नहीं तब होश, रोस में कई पडोसी |
लेकर क्यूँ नहिं भगा, ताव खा कहते जोशी |

हुआ पडोसी मस्त, दिवाली से घर रोशन |
देख उसे खुशहाल, लगाती दोष पड़ोसन |

 

 

दामिनी के दोस्त का बयान और शर्मशार मानवता !!

 (पूरण खंडेलवाल) 

दुनिया भागमभाग में, घायल पड़ा शरीर |
सुने नहीं कोई वहां, करे बड़ी तकरीर |
करे बड़ी तकरीर, सोच क्या बदल चुकी है |
नहीं बूझते पीर, निगाहें आज झुकी हैं |
सामाजिक कर्तव्य, समझना होगा सबको |
अरे धूर्तता छोड़, दिखाना है मुँह रब को ||

फुर्सत


रचना दीक्षित 


 कृष्णा की डोरी जटिल, बाँध गया मन मोर ।
ज्यों ज्यों जूझूँ गाँठ से, त्यों त्यों उलझे डोर ।।



लम्पट सत्तासीन, कमीशन खोर विधाता-रविकर

करदाता के खून को, ले निचोड़ खूंखार | 
 रविकर बन्दर-बाँट से, होता दर्द अपार |

होता दर्द अपार, बड़े कर के कर चोरी |
भोगें धन-ऐश्वर्य, खींचते सत्ता डोरी |


लम्पट सत्तासीन, कमीशन खोर विधाता | 
जीना है दुश्वार, मरे सच्चा करदाता ||
Photo0093.jpg


"धूप ज़रा मुझ तक आने दो" (चर्चा मंच-१११६)



डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

सुन्दर चर्चा-मंच का, गुरुवर श्री गणेश |
अति उपयोगी लिंक से, जागृति होता देश |
जागृति होता देश, केश अब फास्ट ट्रैक पर |
दे सटीक सन्देश, देह का करिए आदर |
शाश्वत नैतिक मूल्य, सीख उच्छ्रिन्खल भोगी |
फांसी का कानून, अन्यथा अति उपयोगी ||

13 comments:

  1. रविकर जी मेरी पोस्ट को अपने ब्लॉग में स्थान देने के लिये शुक्रिया.

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  2. वाह!
    आपकी यह पोस्ट कल दिनांक 07-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  3. अरे वाह...!
    अब तो बहुत सारी काव्यमयी टिप्पणियाँ मन को लुभा रही हैं!

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  4. आपका आभार , आपकी काव्यमयी टिप्पणियाँ रचनाओं के चार चाँद लगा देती है !!

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  5. आपकी टिप्पणियाँ व्याख्या के सम सही,काव्य से कम नहीं !

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  6. ravi ji apki chuni hui sabhi post bahut achchhi hai sabhi rachanakaron ke sath sath sadar abhar .

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  7. सुन्दर चर्चा

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  8. हलकी फुलकी में भी व्यंग्य विनोद है तंज है चुभन है जो अब धीरे धीरे ही कम हो पायेगी .काँटा गहरा लगा है करजवा में सैयां .

    क्या बात है जी लिंक लिखाड़ी की .

    लिंक लिखाड़ी ,बड़ा खिलाड़ी
    आगे रहता है यह हर दम

    सभी पिछाड़ी .

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  9. हर वाशिंदा मोहल्ले का,तबसे ही वक्त पर घर पहुँचने लगा है।
    पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    अंधड़ !

    दोष पड़ोसन का नहीं, बिगड़ा बड़ा पड़ोस |
    अंधड़ आते इस कदर, रहे नहीं तब होश |

    रहे नहीं तब होश, रोस में कई पडोसी |
    लेकर क्यूँ नहिं भगा, ताव खा कहते जोशी |

    हुआ पडोसी मस्त, दिवाली से घर रोशन |
    देख उसे खुशहाल, लगाती दोष पड़ोसन |

    हलकी फुलकी में भी व्यंग्य विनोद है तंज है चुभन है जो अब धीरे धीरे ही कम हो पायेगी .काँटा गहरा लगा है करजवा में सैयां .

    क्या बात है जी लिंक लिखाड़ी की .

    लिंक लिखाड़ी ,बड़ा खिलाड़ी
    आगे रहता है यह हर दम

    सभी पिछाड़ी .

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  10. चर्चा के सभी लिंक अपने वक्त से बा -वास्ता हैं जीवंत हैं मौजू हैं .बधाई .

    बहुत बढ़िया है गागर में सागर जैसे .


    फिर स्वप्न सलोने टूटेंगे,
    कुछ मीत पुराने कुछ रूठेंगे,
    लेकिन जीवन के उपवन में,
    आशा के अंकुर फूटेंगे,
    खुशियों का होगा फिर धमाल।
    आया जीवन में, नया साल।।
    एक अलग अंदाज़ लिए एक अनोखा प्यार लिए ,जोश और उल्लास लिए है यह नव वर्ष अभिनंदनी पोस्ट

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