Wednesday, 16 January 2013

पागल बना मसीह, छुड़ाकर हाथ गए जो


साथी *पहली बार जिसे पकड़ा था,वह था मेरा हाथ।और कहा था ,

पगले को सब ध्यान है, मिलन-विछोह *अनीह ।
जागृति हर एहसास है, पागल बना मसीह ।
पागल बना मसीह, छुड़ाकर हाथ गए जो ।
बाकी अब भी **सीह, डूब कर स्वयं गया खो ।
साठ वर्ष का साथ, मिलो फिर जीवन अगले ।
पकडूँ फिर से हाथ, मसीहा हम हैं पगले ।।
*बिन चेष्टा 
**खुश्बू 
 



व्याकुल वनिता वत्स, महाकामी *वत्सादन


हुआ भयानक हादसा, दिल्ली में वीभत्स

रौद्र-करुण उत्तेजना, व्याकुल वनिता-वत्स ।

व्याकुल वनिता वत्स, महाकामी *वत्सादन ।
अद्भुत सत्ताधीश, शांत-रस का उत्पादन ।
करे हास्य-श्रृंगार  , किन्तु फिर पाक अचानक ।
 काट गया दो शीश, वीर रस हुआ भयानक ।।
*भेड़िया 

न्यूज चैनलों में तन गए तोप !


महेन्द्र श्रीवास्तव  
 
चै-चै चैनल पर शुरू,  कमर्शियल के संग |
सुषमा ने भर ही दिया, जन-गन-मन में जंग |
जन-गन-मन में जंग, रंग में आया भारत |
लेकिन सत्ता
दंग, अंग सब बैठ विचारत |
 उधर पाक में कूच, विपक्षी कूचें धै-धै |

हो जाए अब वार, मची चैनल पर चै चै ||

पा जी राजी तब हुवे, समझ सके जब फिल्म ।
आठ दिनों तक था नहीं, घटना का भी इल्म ।
घटना का भी इल्म, कराना था एडमीशन ।
नातिन को नर्सरी, और राहुल को ट्यूशन ।
कोई भी इस्कूल, नहीं ना दिग्गी राजी ।
रहा इधर मशगूल, उधर सिर काटे पाजी ।।


अभिव्यंजना

काली-कलुषित नजर से, रहे सुरक्षित नारि |
बने सुरक्षित तंत्र अब, धरे ध्यान परिवारि |
धरे ध्यान परिवारि, विसारो पिछली बातें |
दुर्घटना से सीख, परख ले रिश्ते नाते |
ले उत्तर जह खोज, बनी हर नारि सवाली |
अगर करोगे देर, बनेगी ज्वाला काली ||






   पूरी की पूरी ख़तम, विरादरी यह धूर्त |

धोखा छल कर-वंचना, करें गलत आपूर्त |

करें गलत आपूर्त, खर्च विज्ञापन पर कर |

लेते अधिक वसूल, फंसे जब रविकर गुरुवर |

रहिये सदा सचेत, बना कर रखो दूरी |

खाओ रोटी-दाल, तलो मत पापड़-पूरी |

11 comments:

  1. घटना का भी इल्म, कराना था एडमीशन ।
    नातिन को नर्सरी, और राहुल को ट्यूशन

    Wah-wah :)

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  2. वाह वाह आदरणीय सर मज़ा आ गया सुबह-सुबह आपके ब्लॉग पर आना बेहद सुखदाई होता है. हार्दिक बधाई सादर

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  3. बढिया लिंक्स
    बहुत सुंदर

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  4. आपकी टिप्पणियों से ऊर्जा मिलती है!
    --
    सार्थक लेखन!

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  5. चै-चै चैनल पर शुरू, कमर्शियल के संग |
    सुषमा ने भर ही दिया, जन-गन-मन में जंग |
    जन-गन-मन को जंग, रंग में आया भारत |
    लेकिन सत्ताधीश, बैठ के रहे विचारत |
    परेशान उत पाक, विपक्षी कूचें धै धै |
    है आतंकी धाक, इधर चैनल की चै चै ||

    बढ़िया है चैनल की चें चें .उत्कृष्ट प्रस्तुति .

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  6. इसे कहते हैं जयपुर जूता ,जयपुर टांग -

    पी सी गोदियाल
    पा जी राजी तब हुवे, समझ सके जब फिल्म ।
    आठ दिनों तक था नहीं, घटना का भी इल्म ।
    घटना का भी इल्म, कराना था एडमीशन ।
    नातिन को नर्सरी, और राहुल को ट्यूशन ।
    कोई भी इस्कूल, नहीं ना दिग्गी राजी ।
    रहा इधर मशगूल, उधर सिर काटे पाजी ।।

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  7. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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  8. बहुत सुन्दर मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार..

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  9. बहुत सटीक टिप्पणियां....

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