मोहन बाबू मर्द, कभी काटी ना चुटकी-
दो दो पैसे में बटा, किम्मी किम्मी दर्द ।
तुम क्या जानो कीमतें, मोहन बाबू मर्द ।
मोहन बाबू मर्द, कभी काटी ना चुटकी ।
देह आज है जर्द, आत्मा अटकी भटकी ।
समय सुरक्षित रेल, बढ़ें सुविधाएं कैसे ?
रहे संपदा लूट, लूट अब दो दो पैसे ।। |
पैमाना अब सब्र का, कांग्रेस लबरेज । ठोकर मारेंगे भड़क, शान्ति-वार्ता मेज । शान्ति-वार्ता मेज, दामिनी को दफनाया । नक्सल के इक्कीस, पाक की हरकत जाया । आज पड़ी जो मार, मरे अब्दुल दीवाना । बेगाने का व्याह, छलक जाता पैमाना ।। |
साथ तेरा ...
(दिगम्बर नासवा)
ऐसा ही यह साथ है, माँ का होता हाथ |
दुःख में जो सहला गई, ले गोदी में माथ | ले गोदी में माथ, *आथ-आथी यह मेरी | दिखा रही सद-पाथ, दिवस या रात्रि घनेरी | तेरा ही देहांश, लगे दर्पण यह कैसा | हाड़-मांस एकांश, मातु मैं बिलकुल ऐसा || *पूँजी होना |
सदा
अपनों को गर दे ख़ुशी, सह लेना फिर कष्ट |
माँ की यह शुभ सीख भी, सदा सदा सुस्पष्ट | सदा सदा सुस्पष्ट, *सदागम सदाबहारी | मेरा मोहन मस्त, मातु मैं हूँ आभारी | रविकर का आनंद, आज आंसू मत रोको | दिखा सदा हे मातु, रास्ता शुभ अपनों को || *अच्छा सिद्धांत |
दान समझ कर डाल दे, हो जा हिन्दु रिलैक्स -
डालो पैसे कुम्भ में, है नहिं मेला टैक्स । दान समझ कर डाल दे, हो जा हिन्दु रिलैक्स । हो जा हिन्दु रिलैक्स, फैक्स आया है भारी । हज पर अगली बार, सब्सिडी की तैयारी । अमरनाथ जय जयतु, नहीं इच्छा तुम पालो । नेकी कर ले भगत, दान दरिया में डालो ।। |
पाक सेना का बर्बर रूपसीधी खरी बात..
पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस । उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी । सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी । बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी । सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।। |
हे राम ! क्या बोल गए आसाराम ...
- महेन्द्र श्रीवास्तव छी छी छी दारुण वचन, दारू पीकर संत । बार बार बकवास कर, करते पाप अनंत । करते पाप अनंत, कथा जीवन पर्यन्तम । लक्ष भक्त श्रीमन्त, अनुसरण करते पन्थम । रविकर बोलो भक्त, निगलते कैसे मच्छी । आशा उगले राम, रोज खा कर जो छिच्छी ।। |
शर्म इन्हें फिर भी नहीं आतीVirendra Kumar Sharma
ram ram bhai
मोमेंटम में तन-बदन, पश्चिम का आवेग ।
सोच रखी पर ताख पर, काट रही कटु तेग ।
काट रही कटु तेग, पुरातन-वादी भारत ।
रहा अभी भी रेंग, रेस नित खुद से हारत ।
ब्रह्मचर्य का ढोंग, आस्था का रख टम-टम ।
पश्चिम का आवेग, सोच को दे मोमेंटम।
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अनुपम लिंक्स संयोजन ...
ReplyDeleteआभार आपका
सादर
सार्थक अभिव्यक्ति!
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