मानवाधिकारियों का दोहरा चरित्र
Saleem akhter Siddiqui
नक्सल मारे जान से, फाड़ फ़ोर्स का पेट। करवाता बम प्लांट फिर, डाक्टर सिले समेट । डाक्टर सिले समेट, कहाँ मानव-अधिकारी । हिमायती हैं कहाँ, कहाँ करते मक्कारी । चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल ? शत्रु देश नापाक, कहाँ का है तू नक्सल ?? |
सभ्यता शासन सुरक्षा क़ानून व्यवस्था दंड प्रक्रिया 2Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
जली दिमागी बत्तियां, किन्तु हुईं कुछ फ्यूज ।
बरबस बस के हादसे, बनते प्राइम न्यूज ।
बनते प्राइम न्यूज, व्यूज एक्सपर्ट आ रहे ।
शब्द यूज कन्फ्यूज, गालियाँ साथ खा रहे ।
सड़ी-गली दे सीख, मिटाते मुंह की खुजली ।
स्वयंसिद्ध *सक सृज्य , गिरे उनपर बन बिजली ।।
*शक्ति |
मर्यादित वो राम जी, व्यवहारिक घनश्याम ।
देख आधुनिक स्वयंभू , ताम-झाम से काम ।
ताम-झाम से काम-तमाम कराते राधे ।
राधे राधे बोल, सकल हित अपना साधे ।
बेवकूफ हैं भक्त, अजब रहती दिनचर्या ।
कर खुद गीता पाठ, रोज ही जाकर मर-या ।
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दर्द और बाज़ार !
संतोष त्रिवेदी
जारज-जार बजार सह, सहवासी बेजार |
दर्द दूसरे के उदर, तड़पे खुद बेकार |
तड़पे खुद बेकार, लगा के भद्र मुखौटा |
मक्खन लिया निकाल, दूध पी गया बिलौटा |
वालमार्ट व्यवसाय, हुआ सम्पूरण कारज |
जारकर्म संपन्न, तड़पती दर दर जारज ||
सच कहता हूँ...
प्रतुल वशिष्ठ
॥ दर्शन-प्राशन ॥
रोवै प्रस्तर पर पटक, जब भी अपना माथ |
व्यर्थ लहू से लाल हो, कुछ नहिं आवे हाथ |
कुछ नहिं आवे हाथ, नाथ-नथुनी तड़पावे |
दास ढूँढ़ता पाथ, किन्तु वो मुड़ी हिलावे |
होय दुसह परिणाम, अंत दोउ दीदा खोवै |
रविकर बारम्बार, कहे क्यों कोई रोवै ||
आलमी स्तर पर हो चुका है मौसम का बिगडैल मिजाज़
Virendra Kumar Sharma
सूखा इत, उत बाढ़ है, कुदरत होती चाड़ |
कहीं बर्फ़बारी विकट, काँप जाय मनु-हाड़ |
काँप जाय मनु-हाड़, हमेशा छेड़-छाड़ हो |
चले काम-लू-लहर, स्खलित भू पहाड़ हो |
बादल फटते ढीठ, मरुस्थल भीगे रूखा |
रखिये तन तैयार, खाइये रूखा सूखा ||
दर्द और बाज़ार !
संतोष त्रिवेदी
जारज-जार बजार सह, सहवासी बेजार |
दर्द दूसरे के उदर, तड़पे खुद बेकार |
तड़पे खुद बेकार, लगा के भद्र मुखौटा |
मक्खन लिया निकाल, दूध पी गया बिलौटा |
वालमार्ट व्यवसाय, हुआ सम्पूरण कारज |
जारकर्म संपन्न, तड़पती दर दर जारज ||
दर्द दूसरे के उदर, तड़पे खुद बेकार |
तड़पे खुद बेकार, लगा के भद्र मुखौटा |
मक्खन लिया निकाल, दूध पी गया बिलौटा |
वालमार्ट व्यवसाय, हुआ सम्पूरण कारज |
जारकर्म संपन्न, तड़पती दर दर जारज ||
सच कहता हूँ...
प्रतुल वशिष्ठ
॥ दर्शन-प्राशन ॥
रोवै प्रस्तर पर पटक, जब भी अपना माथ |
व्यर्थ लहू से लाल हो, कुछ नहिं आवे हाथ |
कुछ नहिं आवे हाथ, नाथ-नथुनी तड़पावे |
दास ढूँढ़ता पाथ, किन्तु वो मुड़ी हिलावे |
होय दुसह परिणाम, अंत दोउ दीदा खोवै |
रविकर बारम्बार, कहे क्यों कोई रोवै ||
रोवै प्रस्तर पर पटक, जब भी अपना माथ |
व्यर्थ लहू से लाल हो, कुछ नहिं आवे हाथ |
कुछ नहिं आवे हाथ, नाथ-नथुनी तड़पावे |
दास ढूँढ़ता पाथ, किन्तु वो मुड़ी हिलावे |
होय दुसह परिणाम, अंत दोउ दीदा खोवै |
रविकर बारम्बार, कहे क्यों कोई रोवै ||
आलमी स्तर पर हो चुका है मौसम का बिगडैल मिजाज़
Virendra Kumar Sharma
सूखा इत, उत बाढ़ है, कुदरत होती चाड़ |
कहीं बर्फ़बारी विकट, काँप जाय मनु-हाड़ |
काँप जाय मनु-हाड़, हमेशा छेड़-छाड़ हो |
चले काम-लू-लहर, स्खलित भू पहाड़ हो |
बादल फटते ढीठ, मरुस्थल भीगे रूखा |
रखिये तन तैयार, खाइये रूखा सूखा ||
कहीं बर्फ़बारी विकट, काँप जाय मनु-हाड़ |
काँप जाय मनु-हाड़, हमेशा छेड़-छाड़ हो |
चले काम-लू-लहर, स्खलित भू पहाड़ हो |
बादल फटते ढीठ, मरुस्थल भीगे रूखा |
रखिये तन तैयार, खाइये रूखा सूखा ||
" A - B - C - D - छोड़ो.., दुश्मन का मुँह तोड़ो ".!!?
PD
SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN
and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of
PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
थोथी गीदड़ भभकियां, इस सत्ता का काम | सीमा पर सिर कट रहे, नक्सल फाड़ें चाम | नक्सल फाड़ें चाम, पेट बम प्रत्यारोपित | हिमायती हुक्काम, करें जनता को कोपित | नारी अत्याचार, सड़ी कानूनी पोथी | त्राहिमाम हरबार, कार्यवाही पर थोथी || |
उठो जागो
kavita verma
कर्णधार ऐ देश के, सुन नारी ललकार | छूट फौज को दे तुरत, आर-पार का वार | आर-पार का वार, सार है इन हमलों का | अब भी क्यूँ हैं शांत, उड़ाता रहता *कोका | कासे कहूँ पुकार, फौज की अपनी जै जै | हो जाए इक बार, छूट दो कर्णधार ऐ || *कबूतर |
पेशी ओ-वेशी भड़क, बोले न्यायाधीश -
पेशी ओ-वेशी भड़क, बोले न्यायाधीश ।
बके गालियाँ राम को, लेकिन देख खबीस । लेकिन देख खबीस, *राम दो दो हैं आये । दे दलील वे किन्तु, जमानत हम ठुकराए । नियमबद्ध अन्यथा, एक क्षण भी है वेशी । करदूं काम-तमाम, आखिरी होती पेशी ।। * दोनों वकीलों के नाम में राम |
उम्दा लिंक संयोजन !!
ReplyDeleteबहुत सार्थक टिप्पणी लेखन!
ReplyDeleteस्वाभिमान बड़ा है वोट से .सरकार अपमान के साथ जी सकती है (भौंदू बच्चा है )लेकिन देश गुस्से में है .उसका स्वाभिमान बकाया है .हमारे मनीष तिवारी कहतें हैं -बड़ा अमानवीय व्यवहार है हरामी
ReplyDeleteबच्चे का भौंदू को कभी भी मार जाता है .हम इसकी निंदा करते है .विदेश मंत्री कहतें हैं -हम बात ही तो कर सकते हैं और क्या कर सकतें हैं .हरामी बच्चा है ही हरामी .जारज संतान है हिन्दुस्तान की
.इसके बाप का अता पता नहीं है।बेहतरीन तंज है वैसे भौंदू अब कह रहा है आगे से मेरे गाल पे मारेगा ,मैं झट दूसरा गाल भी आगे कर दूंगा . बापू ने हमें यही सिखाया है .मेघालय और त्रिपुरा त्रिपुरा
के चुनाव नज़दीक है हरामी बच्चे के गाल पे लगा दिया तो मुसलमान नाराज़ हो जायेंगे .
हैं तो ये असली मिसायल और बम लेकिन मुसलमान नाराज हो जायेंगे त्रिपुरा -मेघालय के .वोट बड़ा होता है देश के स्वाभिमान से .भारत धर्मी समाज के दो अदद सिरों से .
आभार आपकी सद्य टिपण्णी का .
ReplyDeleteथोथी गीदड़ भभकियां, इस सत्ता का काम |
सीमा पर सिर कट रहे, नक्सल फाड़ें चाम |
नक्सल फाड़ें चाम, पेट बम प्रत्यारोपित |
हिमायती हुक्काम, करें जनता को कोपित |
नारी अत्याचार, सड़ी कानूनी पोथी |
त्राहिमाम हरबार, कार्यवाही पर थोथी ||
यही मानस है जन मन का लेकिन सरकार मरी हुई लाश अपनी खुद ही ढो रही है .किसे मारेगी ?
kavita verma
ReplyDeleteकासे कहूँ?
कर्णधार ऐ देश के, सुन नारी ललकार |
छूट फौज को दे तुरत, आर-पार का वार |
आर-पार का वार, सार है इन हमलों का |
अब भी क्यूँ हैं शांत, उड़ाता रहता *कोका |
कासे कहूँ पुकार, फौज की अपनी जै जै |
हो जाए इक बार, छूट दो कर्णधार ऐ ||
*कबूतर
निकाल दो अब जनाज़ा सरकार का .त्रिपुरा और मेघालय में अन्यत्र कहीं भी जहां चुनाव हो .मरी हुई सरकार का क्या कीजे ?
...जय हो :-)
ReplyDeleteलाजबाब टिप्पणियाँ,,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
badhiya links...........
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