.इस देश की जनता उनके उत्तर की प्रतीक्षा में है.
Virendra Kumar Sharma
दिग्गी तो दरअसल है, सत्ता-शत्रु विषाणु ।
कांग्रेस से है चिढ़ा, पटके बम परमाणु ।
पटके बम परमाणु, मिटाना हरदम चाहे ।
राज-पुत्र दोगला, भूत-भटके चौराहे ।
राहुल का यह कोच, टिप्पणी करता भद्दी ।
पावर से है दूर, मिली कबसे नहिं गद्दी ।।
नारा ढीला हो गया, निन्यानवे बटेर |
पहुँचायें सत्ता सही, चाहे देर सवेर |
चाहे देर सवेर, गरीबी रेखा वालों |
फँसता मध्यम वर्ग, साथ अब इन्हें बुला लो |
मँहगाई की मार, टैक्स ने भी संहारा |
लाल-कार्ड बनवाय, लगायें हम भी नारा |
मुखौटा
Johny Samajhdar
करे चिरौरी रात-दिन, गिन गिन सौ सौ बार ।
लेकिन कवि के झूठ पर, नहीं करे एतबार ।
नहीं करे एतबार, बड़ी चालाक प्रियतमा ।
पर मानूँ क्यूँ हार, बड़ा जिद्दी है बलमा ।
करूँ फैसला आज, मंगाऊँ मौरा-मौरी ।
होंगे मंगल काज, करूँ ना और चिरौरी ।।
.इस देश की जनता उनके उत्तर की प्रतीक्षा में है.
Virendra Kumar Sharma
दिग्गी तो दरअसल है, सत्ता-शत्रु विषाणु ।
कांग्रेस से है चिढ़ा, पटके बम परमाणु ।
पटके बम परमाणु, मिटाना हरदम चाहे ।
राज-पुत्र दोगला, भूत-भटके चौराहे ।
राहुल का यह कोच, टिप्पणी करता भद्दी ।
पावर से है दूर, मिली कबसे नहिं गद्दी ।।
नारा ढीला हो गया, निन्यानवे बटेर |
पहुँचायें सत्ता सही, चाहे देर सवेर |
चाहे देर सवेर, गरीबी रेखा वालों |
फँसता मध्यम वर्ग, साथ अब इन्हें बुला लो |
मँहगाई की मार, टैक्स ने भी संहारा |
लाल-कार्ड बनवाय, लगायें हम भी नारा |
मुखौटा
Johny Samajhdar
करे चिरौरी रात-दिन, गिन गिन सौ सौ बार ।
लेकिन कवि के झूठ पर, नहीं करे एतबार ।
नहीं करे एतबार, बड़ी चालाक प्रियतमा ।
नहीं करे एतबार, बड़ी चालाक प्रियतमा ।
पर मानूँ क्यूँ हार, बड़ा जिद्दी है बलमा ।
करूँ फैसला आज, मंगाऊँ मौरा-मौरी ।
होंगे मंगल काज, करूँ ना और चिरौरी ।।
दिल और दिमाग के लिए बुरा नहीं है अंडा
Virendra Kumar Sharma
अंडे से बढ़ता नहीं, दिल दिमाग का दर्द |
डंडे से बस में रहे, पर्दा बर्दा मर्द |
पर्दा बर्दा मर्द, लीक से नहीं भागता |
करे बयानी फर्द, होश में रहे जागता |
रविकर हो भयभीत, पास आता जो सन्डे |
दिवस करूँ व्यतीत, देखते डंडे अंडे ||
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
रहे रिपु-दमन हैं विछा, पलक-पाँवड़े आज |
माँगे नोबुल शान्ति का, अपना सेक्युलर राज |
अपना सेक्युलर राज, लाज ना आती इस को |
उस दुश्मन पर नाज, सजा देनी है जिस को |
दिग्गी-शिंदे साब, वहाँ इज्जत फरमाते |
राज-पाट उपभोग, अभय उनसे पा जाते ||
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
रहे रिपु-दमन हैं विछा, पलक-पाँवड़े आज |
माँगे नोबुल शान्ति का, अपना सेक्युलर राज |
अपना सेक्युलर राज, लाज ना आती इस को |
उस दुश्मन पर नाज, सजा देनी है जिस को |
दिग्गी-शिंदे साब, वहाँ इज्जत फरमाते |
राज-पाट उपभोग, अभय उनसे पा जाते ||
माँगे नोबुल शान्ति का, अपना सेक्युलर राज |
अपना सेक्युलर राज, लाज ना आती इस को |
उस दुश्मन पर नाज, सजा देनी है जिस को |
दिग्गी-शिंदे साब, वहाँ इज्जत फरमाते |
राज-पाट उपभोग, अभय उनसे पा जाते ||
ख्वाहिश तेरी गर दिली, नहीं लगाओ अक्ल |
नहीं लगाओ अक्ल, शक्ल के बड़े पुजारी |
जाय बसों तुम पाक, भरे हैं वहाँ फरारी |
कुछ दिन लोगे झेल, किन्तु जब समझो पूरा |
आ जाना इस देश, काम मत छोड़ अधूरा ||
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।
बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।
"आने वाला है बसन्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
कुंहरा छटने में अभी, दिखता लंबा वक्त |
हम में से हर एक को, लेना निर्णय शख्त |
लेना निर्णय शख्त, हवा बदलाव बहायें |
सदाचार सदनीति, प्रेम-आदर्श निभायें |
पर सत्ता कमबख्त, लगा बैठी है पहरा |
तन मन दें धन-रक्त, छ्टे तब गुरुवर कुंहरा |
महेन्द्र श्रीवास्तव
पद्म-मीनिया भी गजब, लगते देखी रेस ।
कहीं हर्ष तो दुःख कहीं, कहीं गजब की ठेस ।
कहीं गजब की ठेस, कहीं जूतियाँ घिसाती ।
बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ।
आया पहला दौर, लगा जो शतक कीनिया ।
पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया।।
ब्रिटिश सांसद भी कहे, पहरावे में दोष ।
आधी आबादी सहे, कारण यह ही ठोस ।
कारण यह ही ठोस, रोष मत करना नारी ।
सैंडिल ऊंची छोड़, करो फिर से तैयारी ।
कोई हाथ लगाय, उठा जूतियाँ फटाफट ।
तुरत नाक-मुंह थूर, गिने बिन मार सटासट ।।
पैंट-शर्ट में पुरुष के, हमें दीखता दोष ।
अंत: वस्त्रों में दिखे, ज्यादा जोश खरोश ।
ज्यादा जोश खरोश, पहन अब वही जाँघिया ।
धोती-कुरता झाड, पजामा बनी धारियां ।
सात्विक भोजन होय, मूक फ़िल्में भी त्यागो ।
बदलो अपने ढंग, गोलियां यूँ मत दागो ।।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।
बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
हम में से हर एक को, लेना निर्णय शख्त |
लेना निर्णय शख्त, हवा बदलाव बहायें |
सदाचार सदनीति, प्रेम-आदर्श निभायें |
पर सत्ता कमबख्त, लगा बैठी है पहरा |
तन मन दें धन-रक्त, छ्टे तब गुरुवर कुंहरा |
महेन्द्र श्रीवास्तव
पद्म-मीनिया भी गजब, लगते देखी रेस ।
कहीं हर्ष तो दुःख कहीं, कहीं गजब की ठेस ।
कहीं गजब की ठेस, कहीं जूतियाँ घिसाती ।
बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ।
आया पहला दौर, लगा जो शतक कीनिया ।
पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया।।
ब्रिटिश सांसद भी कहे, पहरावे में दोष ।
आधी आबादी सहे, कारण यह ही ठोस ।
कारण यह ही ठोस, रोष मत करना नारी ।
सैंडिल ऊंची छोड़, करो फिर से तैयारी ।
कोई हाथ लगाय, उठा जूतियाँ फटाफट ।
तुरत नाक-मुंह थूर, गिने बिन मार सटासट ।।
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पैंट-शर्ट में पुरुष के, हमें दीखता दोष ।
अंत: वस्त्रों में दिखे, ज्यादा जोश खरोश ।
ज्यादा जोश खरोश, पहन अब वही जाँघिया ।
धोती-कुरता झाड, पजामा बनी धारियां ।
सात्विक भोजन होय, मूक फ़िल्में भी त्यागो ।
बदलो अपने ढंग, गोलियां यूँ मत दागो ।।
बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ,,,,वाह वाह ,,,,क्या खूब लिखा है ,,,,
ReplyDeleteबढ़िया टिप्पणियाँ!
ReplyDeleteअभी तो शाम दूर है!
तह तक और भी आ जायेगी यहाँ!
बालिग़ जब तक हो नहीं, चन्दा-तारे तोड़ ।
ReplyDeleteमनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ....और जुड़ गई कुछ बातें...आभार आपका। सारे लिंक्स बेहतरीन हैं।
उम्दा लिंक !!
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