दूध की धुली नारियाँ -
सच्चित-सचिन
लज्जा की प्रतिमूर्ति को, मिला नपुंसक नाथ |
काम वासना के लिए, क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ ? क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ, उसे भी ज्वर चढ़ता है | जो भी हत्थे चढ़े, सहारा बन बढ़ता है | माने रविकर पक्ष, बिगाड़े पर क्या काकी ? फ़ोकट में दे पाठ, बात समझो लज्जा की || |
"रोज-रोज ही गीत नया है गाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
गा गा कर जिंदगी बिताना |
फिर भी दुनिया मारे ताना | अश्रु बहाना तन तड़पाना- सम्मुख आये, करे बहाना || |
मैं करूं क्या ....
Dr (Miss) Sharad Singh
लक्ष्मण रेखा खींच के, जाय बहाना पाय ।
खून बहाना लूटना, दे मरजाद मिटाय ।
दे मरजाद मिटाय, सदी इक्कीस आ गई ।
किन्तु सोच उन्नीस, बढ़ी है नीच अधमई ।
पुरुषों के कुविचार, जले पर केवल रावण।
रेखा चलूं नकार, पुरुष भव खींचा, लक्ष्मण ।
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अच्छा लिंक संयोजन !!
ReplyDeleteबेहतरीन तंज ,रूपकात्मक अभिव्यक्ति विचार की हमारे दौर की सुलगती दावानल की .जलाना पड़ेगा पूरा आरण्य .
ReplyDeleteअच्छे लिनक्स पढ़ने को मिले ......
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteअपनी लेखनी से आप लेखक का मान बढा देते हैं ...
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