जल मछली और मत्स्य पुरुष
Virendra Kumar Sharma
मानव *मत्सर मानिए, मत्स्य-नारि मजबूर |
दूर दर्द अनुभूति से, जुल्म सहे तब क्रूर | जुल्म सहे तब क्रूर, नारि को मत्स्य मानता | मच्छ-घातिनी डाल, फँसा के रहा तानता | छटपटाय-तड़पाय, भून कर खाता रविकर | हुई जागरुक किन्तु, सुधर रे मानव मत्सर ||
*डाह रखने वाला
|
सियानी गोठ
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
कुक्कुर-खांसी पाल के, बैठे रविकर द्वार ।
घर की रखवाली करे, पुत्र बसा ससुरार ।
पुत्र बसा ससुरार, श्वान सी निद्रा अच्छी ।
एकमात्र दे कष्ट, घूमती कुक्कुर-मच्छी ।
हाथ लकुटिया थाम, कलेजा धुक्कुर धुक्कुर ।
राम राम सतनाम, अवस्था रविकर कुक्कुर ।।
|
मातृभूमि,,,
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
स्वामी जी की सीख प्रभु, कर दे सबको बाध्य ।
सर्वोपरि हो देश हित, मातृभूमि आराध्य ।
मातृभूमि आराध्य, धर्म से ऊपर दर्जा ।
जाति-पंथ की बात, करेगी अब नहिं परजा ।
कहें विवेकानंद, भरो तुम सारे हामी ।
जीवन भर आनंद, कहे कब का यह स्वामी ।। |
मसखरी कर गये.................
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
लगती उनको मसखरी, खरी खरी जो बात |
लौह-बदन देती गला, यह मस्तूरी जात | यह मस्तूरी जात, सांझ मदभरी बनाती | लाये झंझावात, रात-भर खूब पकाती | तस्कर जैसी नीति, रही यह जीवन ठगती | अन्त्याक्षर से खेल, सुबह में रविकर लगती || |
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो-
महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
|
दर्द दूसरे के उदर, तड़पे खुद बेकार | तड़पे खुद बेकार, लगा के भद्र मुखौटा | मक्खन लिया निकाल, दूध पी गया बिलौटा | वालमार्ट व्यवसाय, हुआ सम्पूरण कारज | जारकर्म संपन्न, तड़पती दर दर जारज || |
अपने नगर-मुहल्ले को सुरक्षित बनाएं- -हल्ले-गुल्ले से खफा, रविकर सत्ताधीश ।
खबर रेप की मीडिया, रोज उछाले बीस ।
रोज उछाले बीस, सधे व्यापारिक हित हैं ।
लगा मुखौटे छद्म, दिखाते बड़े व्यथित हैं ।
हरदम होते रेप, पड़े दावा नहिं पल्ले ।
देखे वर्ष अनेक, सुरक्षित दिखे मुहल्ले ।।
|
खूबसूरत लिंक !!
ReplyDeleteसभी लिंकों पर टिप्पणी बहुत बढ़िया रही।
ReplyDeleteबहुत सुंदर उम्दा टिप्पणियाँ ,,आभार
ReplyDeleterecent post: मातृभूमि,
मातृभूमि आराध्य, धर्म से ऊपर दर्जा ।
ReplyDeleteजाति-पंथ की बात, करेगी अब नहिं परजा ।
बहुत बढ़िया !
बहुत सार्थक सन्देश परक प्रस्तुति .फटकार का ललकार भी सलाह भी .शुभेच्छा भी .
ReplyDeleteस्वामी जी की सीख प्रभु, कर दे सबको बाध्य ।
सर्वोपरि हो देश हित, मातृभूमि आराध्य ।
मातृभूमि आराध्य, धर्म से ऊपर दर्जा ।
जाति-पंथ की बात, करेगी अब नहिं परजा ।
कहें विवेकानंद, भरो तुम सारे हामी ।
जीवन भर आनंद, कहे कब का यह स्वामी ।।