Monday 14 January 2013

मातृभूमि आराध्य, धर्म से ऊपर दर्जा -



जल मछली और मत्स्य पुरुष

Virendra Kumar Sharma 

 मानव *मत्सर मानिए, मत्स्य-नारि मजबूर |
दूर दर्द अनुभूति से, जुल्म सहे तब क्रूर |
जुल्म सहे तब क्रूर, नारि को मत्स्य मानता |
मच्छ-घातिनी डाल, फँसा के रहा तानता |
छटपटाय-तड़पाय, भून कर खाता रविकर |
हुई जागरुक किन्तु,  सुधर रे मानव मत्सर ||
 
 *डाह रखने वाला



सियानी गोठ


अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 

कुक्कुर-खांसी पाल के, बैठे रविकर द्वार ।
घर की रखवाली करे, पुत्र बसा ससुरार ।
  पुत्र बसा ससुरार, श्वान सी निद्रा अच्छी ।
एकमात्र दे कष्ट,  घूमती कुक्कुर-मच्छी ।
हाथ लकुटिया थाम, कलेजा धुक्कुर धुक्कुर ।
राम राम सतनाम, अवस्था रविकर कुक्कुर ।।
 

मातृभूमि,,,


धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 

स्वामी जी की सीख प्रभु, कर दे सबको बाध्य ।
 सर्वोपरि हो देश हित, मातृभूमि आराध्य ।
मातृभूमि आराध्य, धर्म से ऊपर दर्जा ।
जाति-पंथ की बात, करेगी अब नहिं परजा ।
कहें विवेकानंद, भरो तुम सारे हामी ।
जीवन भर आनंद, कहे कब का यह स्वामी ।।


मसखरी कर गये.................

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)  अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) 
 
 लगती उनको मसखरी, खरी खरी जो बात |
लौह-बदन देती गला, यह मस्तूरी जात |
यह मस्तूरी जात, सांझ मदभरी बनाती |
लाये झंझावात, रात-भर खूब पकाती |
तस्कर जैसी नीति, रही यह जीवन ठगती |
अन्त्याक्षर से खेल, सुबह में रविकर लगती ||


गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो-

महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।

दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो

मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।


दर्द और बाज़ार !

संतोष त्रिवेदी 
जारज-जार बजार सह, सहवासी बेजार |
दर्द दूसरे के उदर, तड़पे खुद बेकार |
तड़पे खुद बेकार, लगा के भद्र मुखौटा |
मक्खन लिया निकाल, दूध पी गया बिलौटा |
वालमार्ट व्यवसाय, हुआ सम्पूरण कारज |
जारकर्म संपन्न, तड़पती दर दर जारज ||


अपने नगर-मुहल्ले को सुरक्षित बनाएं- -

हल्ले-गुल्ले से खफा, रविकर सत्ताधीश ।
खबर रेप की मीडिया, रोज उछाले बीस ।
रोज उछाले बीस, सधे व्यापारिक हित हैं ।
 लगा मुखौटे छद्म, दिखाते बड़े व्यथित हैं । 
हरदम होते रेप, पड़े दावा नहिं पल्ले ।
देखे वर्ष अनेक, सुरक्षित दिखे मुहल्ले ।।



5 comments:

  1. सभी लिंकों पर टिप्पणी बहुत बढ़िया रही।

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  2. बहुत सुंदर उम्दा टिप्पणियाँ ,,आभार

    recent post: मातृभूमि,

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  3. मातृभूमि आराध्य, धर्म से ऊपर दर्जा ।
    जाति-पंथ की बात, करेगी अब नहिं परजा ।
    बहुत बढ़िया !

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  4. बहुत सार्थक सन्देश परक प्रस्तुति .फटकार का ललकार भी सलाह भी .शुभेच्छा भी .


    स्वामी जी की सीख प्रभु, कर दे सबको बाध्य ।
    सर्वोपरि हो देश हित, मातृभूमि आराध्य ।
    मातृभूमि आराध्य, धर्म से ऊपर दर्जा ।
    जाति-पंथ की बात, करेगी अब नहिं परजा ।
    कहें विवेकानंद, भरो तुम सारे हामी ।
    जीवन भर आनंद, कहे कब का यह स्वामी ।।

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