खांटी दीदी गिरी है, रहे मौन सरदार-
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हिंदी की चिंदी करे, हिन्दू की तौहीन |
गंदे-बा-शिन्दे बहुत, दुनिया करे यकीन | दुनिया करे यकीन, एक मंत्री जब बोले |
यह-आतंकी-देश, लिस्ट में शामिल हो ले |
दिला रही है अभय, चाटुकारों को थ्योरी | हटे नाम हिट-लिस्ट, मरें अब नहीं अघोरी || |
राहुलजी थोडा थोडा पसीना आ रहा हैBamulahija dot Comसीना चौड़ा राहु कै, बहा पसीना केतु | अमृत-घट लेकर भगे, बोलो फिर किस हेतु | बोलो फिर किस हेतु, लड़ाई राहु-केतु में | मिले ना धेली एक, बहायें सेत-मेत में | निन्यानवे सँदेश, हमारा हक़ भी छीना | देगा क्या *दरमाह, बहायें तभी पसीना | *वेतन |
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स्वयम्बरा
बोरे ऊँची कुर्सियां, ले शिक्षा का नाम |
बटे किताबी-ज्ञान ही, ताम-झाम से काम |
ताम-झाम से काम, दुकाने कितनी ऊँची | पर फीका पकवान, फिरे किस्मत पर कूँची | देश धर्म सभ्यता, सकल ये कागज कोरे | इससे अच्छा बैठ, बिछा के अपने बोरे || तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान
तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान ।
काबुल में विस्फोट कर, डाला फिर व्यवधान ।
डाला फिर व्यवधान, यही क्या यहाँ हो रहा ?
होता भी है अगर, वजीरी व्यर्थ ढो रहा ।
फूट व्यर्थ बक्कार, इन्हें चुनवा दे जिन्दे ।
होवे खुश अफगान, पाक के तो बाशिंदे ।।
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अश्रु करे आसान पथ, जो सत्ता तक जाय ।
नहीं बहाना है बुरा, उचित बहाना पाय ।
चाहे मन में चोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
माँ का दिल ...(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे...........
संस्मरण में रण दिखा, सुमिरन सा भावार्थ | खड़े खड़े कुरुक्षेत्र में, होते विचलित पार्थ ? होते विचलित पार्थ, नहीं परमारथ भूलो | एक बार फिर आज, चरण माता के छू लो | माता रही विराज, युगों से ईश चरण में || निहित मरण सा शब्द, नासवा संस्मरण में || | |
बहुत बढ़िया..
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ReplyDeleteखांटी दीदी गिरी है, रहे मौन सरदार |
वाजिब हक़ की मांग भी, दे सरकार नकार |
दे सरकार नकार, हुई वो आग-बबूली |
गर बैठूं मैं मार, कहो गुंडा मामूली |
इसीलिए लो झेल, मरे माँ मानुष-माटी |
रेल तेल का खेल, कहे दीदी यह *खांटी ||
अपने पूर्व सहयोगियों से पीटने वालों की बात ही और है .चुप्पा मुंह हफ्ते से पहले नहीं बोलता है .वाह दीदी वाह !
हिंदी की चिंदी करे, हिन्दू की तौहीन |
ReplyDeleteगंदे-बा-शिन्दे बहुत, दुनिया करे यकीन |
दुनिया करे यकीन, एक मंत्री जब बोले |
यह-आतंकी-देश, लिस्ट में शामिल हो ले |
दिला रही है अभय, चाटुकारों को थ्योरी |
हटे नाम हिट-लिस्ट, मरें अब नहीं अघोरी ||
शिंदे को भारी पड़े भैया खूब ये बोली
शिंदे को भारी पड़े ,देखो कैसी बोली ,
ReplyDelete२४ को निकलेगी मतवालों की टोली .
पहले तौलो फिर बोलो
ReplyDeleteशब्दों की आग कई मर्तबा फैलती ही चली जाती है .शब्दों की लपट बे काबू
हो जाती है .
शिंदे साहब ने हिन्दू धर्म (शब्द)पर जो लेवल दहशतगर्दी का लगाया है -
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के संरक्षण में भारत में
आतंकी कैम्प चलाये जाने का आरोप मढ़ा है .उन्हें शायद न मालूम हो
इसमें दो बड़ी खामियां हैं .हिंदुत्व जीवन शैली ,वृहद् भारत धर्मी समाज को
इस आरोप ने कलंकित किया है . यह एक धर्म की ही तौहीन नहीं एक
सहिष्णु ,सर्वसमावेशी ऐसी परम्परा का निरादर है जहां देव कुल को
लेकर कोई झगडा नहीं है .पूर्ण प्रजा तंत्र है .एक देववादी कट्टरता को यहाँ
कोई जगह नहीं दी गई है .
शब्द जनित ऐसी ही आग तब लगती है जब कोई स्वघोषित लादेन
इस्लामी
मसीहा बनकर जघन्य अपराध करता है करवाता .9/11 इसका ज़िंदा सबूत
है .इसी के बाद से एक शब्द हवा में तैरता अफवाह की तरह ऊपर और
ऊपर बिना पंख के पाखी सा अफवाह बन उड़ता गया' इस्लामिक टेररिज्म '
,और' इस्लामो -
फोबिया' में तब्दील हो गया .पूरी मुस्लिम कौम बदनाम हुई .जबकि कौमे
और मजहब आतंक वादी नहीं होते ,कुछ स्व:घोषित खलीफाओं फतवा
खोरों द्वारा बरगलाए गए लोग ज़रूर आतंकवादी बन जाते हैं .
शाहरुख खान को इसीलिए बारहा अमरीका में धर लिया जाता है .
शिंदे साहब को जो देश के गृह मंत्री हैं शब्दों के चयन में सावधानी बरतनी
चाहिए थी .
दूसरी खामी यह है उनके द्वारा लगाए गए आरोपण में जान होनी चाहिए
.सामने लायें वह सत्य को यदि ऐसा कुछ है तो .जब तक न्यायालय उनके
खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं करता ,उन्हें अपराधी नहीं घोषित करता आपका
शिंदे साहब ऐसा कहना दुस्साहस ही कहा जाएगा .आपके पास तो जांच
रपट भी है आर एस एस और बी जे पी के तत्वावधान चलने वाले आतंकी
कैम्पों की .द्रुत न्यायालय गठित करने का दौर है यह .आपको ऐसा भी
करने से
रोकने वाला कोई नहीं है .क्यों नहीं करवा देते आप दूध का दूध और पानी
का पानी .
शब्द बूमरांग करते हैं शिंदे साहब .
यू केन पुट योर एक्ट टुगेदर .
ram ram bhai
ReplyDeleteमुखपृष्ठ
मंगलवार, 22 जनवरी 2013
पहले तौलो फिर बोलो
http://veerubhai1947.blogspot.in/
गोली सी चुभती है बोली
ReplyDeleteहोली सो होली ?
खबरगंगा
ReplyDeleteबोरे ऊँची कुर्सियां, ले शिक्षा का नाम |
बटे किताबी-ज्ञान ही, ताम-झाम से काम |
ताम-झाम से काम, दुकाने कितनी ऊँची |
पर फीका पकवान, फिरे किस्मत पर कूँची |
देश धर्म सभ्यता, सकल ये कागज कोरे |
इससे अच्छा बैठ, बिछा के अपने बोरे ||
बहुत खूब सर जी .टिपण्णी नुमा काव्य कुंडली का ज़वाब नहीं
बन्दूक से चली गोली और जुबां से निकला शब्द वापस नहीं लौटता है टिंडे साहब जी .
ReplyDeleteआप भूल रहें हैं सबसे बड़े कश्मीरी पंडित (हिन्दू )ये ही वंशवादी थे जिनके वंशज के आप तलुवे चाट रहें हैं .इसलिए मिस्टर टिंडे : पहले तौलो फिर बोलो .
ReplyDeleteबेटी अभी बाप के ही घर है मांग लो माफ़ी फिर देर हो जायेगी .जिसके बीच में रात उसकी क्या बात .कल २३ परसों २४ जनवरी .
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
ReplyDeleteआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
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