उठो जागो
kavita verma
कर्णधार ऐ देश के, सुन नारी ललकार |
छूट फौज को दे तुरत, आर-पार का वार | आर-पार का वार, सार है इन हमलों का | अब भी क्यूँ हैं शांत, उड़ाता रहता *कोका | कासे कहूँ पुकार, फौज की अपनी जै जै | हो जाए इक बार, छूट दो कर्णधार ऐ || *कबूतर |
Let's go Goa आओ गोवा चले।
Jatdevta संदीप
दमड़ी पकडे दांत से, यह रविकर है सूम || |
कथा भागवत की ख़तम, देह देश को दान ।
रखिये अब तलवार भी, खाली खाली म्यान ।
खाली खाली म्यान, आग तन-बदन लगाए ।
गाड़ी यह मॉडर्न, बिना ब्रेक सरपट जाए ।
झटके खाए सोच, चाल है दकियानूसी ।
अपनी रक्षा स्वयं, करो मत काना-फूसी ।।
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बीस साल का हाल है, काल बजावे गाल ।
पश्चिम का जंजाल कह, नहीं गलाओ दाल ।
नहीं गलाओ दाल, दाब जब कम हो जाये ।
काली-गोरी दाल, नहीं रविकर पक पाए ।
होवे पेट खराब, नहीं जिम्मा बवाल का ।
खुद से खुद को दाब, तजुर्बा बीस साल का ।।
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करो विवेकानंद की, चर्चा मेरे मित्र-
चर्चा करो मगर कैसे और किसकी ?
vandana gupta
करो विवेकानंद की, चर्चा मेरे मित्र |
युवा वर्ग के हृदय में, होय स्थापित चित्र | होय स्थापित चित्र, ढेढ़ सौ साल हो रहे | प्रासंगिक है सीख, समय समय पर जो कहे | हे भारत के युवा, देश को अब मत अखरो | पूरे कर कर्तव्य, शपथ लेकर मत मुकरो | |
सी बी आई ली पकड़, नाई जब्त गुलेल।
गुप्ता जी की डायरी, दे मुश्किल में ठेल ।
दे मुश्किल में ठेल, जांच हो रही भयंकर।
किससे किससे मेल, बोल दे क्या है चक्कर ।
सुनते स्विस हर बाल , खड़ा सीधा हो जाता ।
आसानी से तभी, जानिये बाल कटाता ।। |
मिथ या यथार्थ ? मोटे अनाज हमेशा अच्छे ?
Virendra Kumar Sharma
साजे गोला ऊन का, गुड़ का बनता पाग |
तिलकुट मोटा बाजरा, ज्वार चना कुल भाग | ज्वार चना कुल भाग, ठण्ड तो बाघ बन रही | एक आसरा आग, जला के होय बतकही | दादा दादी कहाँ, सुनाते किस्से ताजे | लट्टू कंचा गोल, हाथ मोबाइल साजे || |
चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल-
नक्सल मारे जान से, फाड़ फ़ोर्स का पेट।
करवाता बम प्लांट फिर, डाक्टर सिले समेट ।
डाक्टर सिले समेट, कहाँ मानव-अधिकारी ।
हिमायती हैं कहाँ, कहाँ करते मक्कारी ।
चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल ?
शत्रु देश नापाक, कहाँ का है तू नक्सल ??
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-1-2013) को (मोटे अनाज हमेशा अच्छे) चर्चा मंच-1123 पर भी होगी!
बढिया लिंक्स.......
ReplyDeleteचुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल-
ReplyDeleteकाट कपाल धरे कपटी, कटुता हर बार बढ़ावत है ।
भूल गया अघ मानवता, फिर भी नित पाक कहावत है ।
नक्सल भी बम प्लांट करे, शव में अब दुष्ट लगावत है ।
अन्दर बाहर घात हुवे, सरदी सरदार भगावत है ।
इस दोगले सरदार के चेहरे पे असीम शान्ति है क्योंकि भारत धर्मी समाज के सिर वोट बैंक न थे ,ऑस्ट्रेलिया में जब एक मुसलमान डॉ को आतंकी होने की बिना और शक सुबह पे धर लिया जाता है तब सरदार करवट बदलता है .वोट कटता है भारत में एक .
नक्सल मारे जान से, फाड़ फ़ोर्स का पेट।
ReplyDeleteकरवाता बम प्लांट फिर, डाक्टर सिले समेट ।
डाक्टर सिले समेट, कहाँ मानव-अधिकारी ।
हिमायती हैं कहाँ, कहाँ करते मक्कारी ।
चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल ?
शत्रु देश नापाक, कहाँ का है तू नक्सल ??
देश को गुस्सा आता है भारत धर्मी समाज को गुस्सा आता है स्वाभिमान है बाकी समाज में लेकिन सरकार का स्वाभिमान मर चुका है होता है तो मात्र मौत का मर्सिया पढके न रह जाती सरकार .वही,निस्सार बातें हमें बहुत दुःख है सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है .
मयार बाकी कहाँ है सरकार में .किसी का भरोसा नहीं अब इसमें .खुद सरकार का भी सरकार पे एतबार नहीं है .
waah..bahut sundar !
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