अपराध विज्ञान : हड्डियां भी बतला सकतीं है अपराधी की संभावित उम्र नस्ल और लिंग
Virendra Kumar Sharma
आगे दारुण कष्ट दे, फिर काँपे संसार |
नाबालिग को छोड़ते, जिसका दोष अपार | जिसका दोष अपार, विकट खामी कानूनी | भीषण अत्याचार, करेगा दुष्ट-जुनूनी | लड़-का-नूनी काट, कहीं पावे नहिं भागे | श्रद्धांजली विराट, तख़्त फांसी पर आगे || |
दो आँखें
ऋता शेखर मधु
आँखों में बेचैनियाँ, काँप दर्द से जाय |
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प्रेम या भ्रमयादें - अमरेन्द्र शुक्ल -अमरछोड़-छाड़ कर क्यूँ यहाँ, करे रोज बदनाम । करे रोज बदनाम, काम का 'पहला' बन्दा । क़तर-व्यौंत कतराय, क़तर मत पर आइन्दा । जारी कर विज्ञप्ति, डाल नजरें फिर प्यारी । रविकर पास प्रमाण, श्रेष्ठ यह प्रेम पुजारी । |
"चाय और आग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
आगे करके हाथ दो, सेंक रहे हम आग । शीत-लहर कटु गलन अति, जमते नदी तड़ाग । जमते नदी तड़ाग, गर्म कर चाय सुड़कते । रहे आग को खोद, आग फिर भी नहिं भड़के । दिल्ली दुर्जन आग, देह में ऐसी लागे । कर निकृष्टतम पाप, जलें जिन्दा वे आगे ।। |
एक अमीर बलात्कारी --
छी छी छी दारुण वचन, दारू पीकर संत ।
बार बार बकवास कर, करते पाप अनंत ।
करते पाप अनंत, कथा जीवन पर्यन्तम ।
लक्ष भक्त श्रीमन्त, अनुसरण करते पन्थम ।
रविकर बोलो भक्त, निगलते कैसे मच्छी ।
आशा उगले राम, रोज खा कर जो छिच्छी ।। |
इम्तिहान ले सिखा के, गुरुवर बेहद शख्त ।
इम्तिहान पहले लिया, बाद सिखाये वक्त ।|
ठोकर खाकर गिर गया, झाड़-झूड़ कर ठाढ़ ।
गर सीखा फिर भी नहीं, पाए कष्ट प्रगाढ़ ।।
लिए अमोलक निधि चले, रक्षा तंत्र नकार ।
उधर लुटेरे ताड़ते, कैसे हो उद्धार ??
अनदेखी दायित्व की, खींच महज इक रेख ।
लक्ष्मण की मजबूरियां, सिया-हरण ले देख ।।
सज्जन-चुप दुर्जन-चतुर, छले छाल नित राम | भक्त श्रमिक आसक्त अघ, रखे काम से काम | अघ=पापी काम=महादेव, विष्णु , कामदेव, कार्य, सहवास की इच्छा आदि |
आज दो शेर हाजिर हैं.......पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !
तली पकौड़ी चाय हो, हो चूल्हे में आग | प्रेयसी का भी साथ हो, जाय ठण्ड फिर भाग | जाय ठण्ड फिर भाग, लहर लड़-शीत लहर से | गुल लागे गुलगुला, ऊर्जा रात्रि पहर से | रविकर पड़ा अकेल, ठण्ड से आये मितली | दिन में लेता खेल, पकड़ कर गुल की तितली || गुल=कोयले का अंगारा |
प्रभावी !!
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़ )