Tuesday, 8 January 2013

कर निकृष्टतम पाप, जलें जिन्दा वे आगे -




अपराध विज्ञान : हड्डियां भी बतला सकतीं है अपराधी की संभावित उम्र नस्ल और लिंग


Virendra Kumar Sharma
आगे दारुण कष्ट दे, फिर काँपे संसार |
नाबालिग को छोड़ते, जिसका दोष अपार |
जिसका दोष अपार, विकट खामी कानूनी |
भीषण अत्याचार, करेगा दुष्ट-जुनूनी |
लड़-का-नूनी काट, कहीं पावे नहिं भागे |
श्रद्धांजली विराट, तख़्त फांसी पर आगे ||

दो आँखें

ऋता शेखर मधु  

आँखों में बेचैनियाँ, काँप दर्द से जाय |
सांत्वना से आपकी, नहीं रूह विलखाय |
नहीं रूह विलखाय, खाय ली देह हमारी |
लाखों लेख लिखाय, बचे पर अत्याचारी |
है भारत धिक्कार, रेप हों हर दिन लाखों |
मरें बेटियाँ रोज, देखते अपनी आँखों ||


प्रेम या भ्रम 

 यादें - अमरेन्द्र शुक्ल -अमर  

प्रेम-पुजारी आपका, हाथ हमारा थाम ।
छोड़-छाड़ कर क्यूँ यहाँ, करे रोज बदनाम
करे रोज बदनाम,  काम का 'पहला' बन्दा ।
क़तर-व्यौंत कतराय, क़तर मत पर आइन्दा 
जारी कर विज्ञप्ति,  डाल नजरें फिर प्यारी 
रविकर पास प्रमाण, श्रेष्ठ यह प्रेम पुजारी 

"चाय और आग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)  

आगे करके हाथ दो, सेंक रहे हम आग ।
शीत-लहर कटु गलन अति, जमते नदी तड़ाग ।
जमते नदी तड़ाग, गर्म कर चाय सुड़कते ।
रहे आग को खोद, आग फिर भी नहिं भड़के ।
दिल्ली दुर्जन आग, देह में ऐसी लागे ।
कर निकृष्टतम पाप, जलें जिन्दा वे आगे ।।

  एक अमीर बलात्कारी --


  छी छी छी दारुण वचन, दारू पीकर संत ।

बार बार बकवास कर, करते पाप अनंत ।


करते पाप अनंत, कथा जीवन पर्यन्तम ।

लक्ष भक्त श्रीमन्त, अनुसरण करते पन्थम ।


रविकर बोलो भक्त, निगलते कैसे मच्छी । 
आशा उगले राम, रोज खा कर जो छिच्छी ।।

 इम्तिहान ले सिखा के, गुरुवर बेहद शख्त ।
इम्तिहान पहले लिया, बाद सिखाये वक्त ।|

ठोकर खाकर गिर गया, झाड़-झूड़ कर ठाढ़ ।
  गर सीखा फिर भी नहीं, पाए कष्ट प्रगाढ़ ।।

 लिए अमोलक निधि चले, रक्षा तंत्र नकार ।
उधर लुटेरे ताड़ते, कैसे हो उद्धार ??

   अनदेखी दायित्व की, खींच महज इक रेख ।
 लक्ष्मण की मजबूरियां, सिया-हरण ले देख ।।

सज्जन-चुप दुर्जन-चतुर, छले छाल नित राम  |
भक्त श्रमिक आसक्त अघ, रखे  काम से काम |

अघ=पापी
 काम=महादेव, विष्णु , कामदेव, कार्य, सहवास की इच्छा आदि

आज दो शेर हाजिर हैं.......

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
 अंधड़ ! 

 तली पकौड़ी चाय हो, हो चूल्हे में आग |
प्रेयसी का भी साथ हो, जाय ठण्ड फिर भाग |
जाय ठण्ड फिर भाग, लहर लड़-शीत लहर से |
गुल लागे गुलगुला, ऊर्जा रात्रि पहर से |
रविकर पड़ा अकेल, ठण्ड से आये मितली |
दिन में लेता खेल, पकड़ कर गुल की तितली ||
 


गुल=कोयले का अंगारा

1 comment: