स्वयम्बरा
बोरे ऊँची कुर्सियां, ले शिक्षा का नाम |
बटे किताबी-ज्ञान ही, ताम-झाम से काम |
ताम-झाम से काम, दुकाने कितनी ऊँची |
पर फीका पकवान, फिरे किस्मत पर कूँची |
देश धर्म सभ्यता, सकल ये कागज कोरे |
इससे अच्छा बैठ, बिछा के अपने बोरे ||
तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान
तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान ।
काबुल में विस्फोट कर, डाला फिर व्यवधान ।
डाला फिर व्यवधान, यही क्या यहाँ हो रहा ?
होता भी है अगर, वजीरी व्यर्थ ढो रहा ।
फूट व्यर्थ बक्कार, इन्हें चुनवा दे जिन्दे ।
होवे खुश अफगान, पाक के तो बाशिंदे ।।
राहुलजी थोडा थोडा पसीना आ रहा है
Bamulahija dot Com
सीना चौड़ा राहु कै, बहा पसीना केतु |
अमृत-घट लेकर भगे, बोलो फिर किस हेतु |
बोलो फिर किस हेतु, लड़ाई राहु-केतु में |
मिले ना धेली एक, बहायें सेत-मेत में |
निन्यानवे सँदेश, हमारा हक़ भी छीना |
देगा क्या *दरमाह, बहायें तभी पसीना |
*वेतन
अश्रु करे आसान पथ, जो सत्ता तक जाय ।
नहीं बहाना है बुरा, उचित बहाना पाय ।
चाहे मन में चोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
माँ का दिल ...
(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे...........
संस्मरण में रण दिखा, सुमिरन सा भावार्थ |
खड़े खड़े कुरुक्षेत्र में, होते विचलित पार्थ ?
होते विचलित पार्थ, नहीं परमारथ भूलो |
एक बार फिर आज, चरण माता के छू लो |
माता रही विराज, युगों से ईश चरण में ||
निहित मरण सा शब्द, नासवा संस्मरण में || |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
शांतचित्त गुरुवर व्यथित, गीदड़ की सरकार |
कुत्ते इज्जत लूटते, नारी करे पुकार |
नारी करे पुकार, गला सैनिक का रेता |
धारदार हथियार, किन्तु बैठा चुप नेता |
इनकी जय जय कार, देश भक्तों को गाली |
सारी जनता आज, खड़ी बन यहाँ सवाली ||
स्वयम्बरा
बोरे ऊँची कुर्सियां, ले शिक्षा का नाम |
बटे किताबी-ज्ञान ही, ताम-झाम से काम |
ताम-झाम से काम, दुकाने कितनी ऊँची |
पर फीका पकवान, फिरे किस्मत पर कूँची |
देश धर्म सभ्यता, सकल ये कागज कोरे |
इससे अच्छा बैठ, बिछा के अपने बोरे ||
ताम-झाम से काम, दुकाने कितनी ऊँची |
पर फीका पकवान, फिरे किस्मत पर कूँची |
देश धर्म सभ्यता, सकल ये कागज कोरे |
इससे अच्छा बैठ, बिछा के अपने बोरे ||
तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान
तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान ।
काबुल में विस्फोट कर, डाला फिर व्यवधान ।
डाला फिर व्यवधान, यही क्या यहाँ हो रहा ?
होता भी है अगर, वजीरी व्यर्थ ढो रहा ।
फूट व्यर्थ बक्कार, इन्हें चुनवा दे जिन्दे ।
होवे खुश अफगान, पाक के तो बाशिंदे ।।
राहुलजी थोडा थोडा पसीना आ रहा है
Bamulahija dot Com
सीना चौड़ा राहु कै, बहा पसीना केतु |
अमृत-घट लेकर भगे, बोलो फिर किस हेतु |
बोलो फिर किस हेतु, लड़ाई राहु-केतु में |
मिले ना धेली एक, बहायें सेत-मेत में |
निन्यानवे सँदेश, हमारा हक़ भी छीना |
देगा क्या *दरमाह, बहायें तभी पसीना |
*वेतन
अश्रु करे आसान पथ, जो सत्ता तक जाय ।
नहीं बहाना है बुरा, उचित बहाना पाय ।
चाहे मन में चोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
माँ का दिल ...
(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे...........
संस्मरण में रण दिखा, सुमिरन सा भावार्थ |
खड़े खड़े कुरुक्षेत्र में, होते विचलित पार्थ ?
होते विचलित पार्थ, नहीं परमारथ भूलो |
एक बार फिर आज, चरण माता के छू लो |
माता रही विराज, युगों से ईश चरण में ||
निहित मरण सा शब्द, नासवा संस्मरण में || |
संस्मरण में रण दिखा, सुमिरन सा भावार्थ |
खड़े खड़े कुरुक्षेत्र में, होते विचलित पार्थ ?
होते विचलित पार्थ, नहीं परमारथ भूलो |
एक बार फिर आज, चरण माता के छू लो |
माता रही विराज, युगों से ईश चरण में ||
निहित मरण सा शब्द, नासवा संस्मरण में || |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
शांतचित्त गुरुवर व्यथित, गीदड़ की सरकार |
कुत्ते इज्जत लूटते, नारी करे पुकार |
नारी करे पुकार, गला सैनिक का रेता |
धारदार हथियार, किन्तु बैठा चुप नेता |
इनकी जय जय कार, देश भक्तों को गाली |
सारी जनता आज, खड़ी बन यहाँ सवाली ||
शांतचित्त गुरुवर व्यथित, गीदड़ की सरकार |
कुत्ते इज्जत लूटते, नारी करे पुकार |
नारी करे पुकार, गला सैनिक का रेता |
धारदार हथियार, किन्तु बैठा चुप नेता |
इनकी जय जय कार, देश भक्तों को गाली |
सारी जनता आज, खड़ी बन यहाँ सवाली ||
सुन्दर !!
ReplyDeleteआप रचना को चार चांद लगा देते हैं ... बहुत कमाल के लिक्खाड़ हैं आप ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे लिंक्स ... एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार सहित
सादर
सार्थक रचनाओं की खुबसूरत प्रस्तुतिकरण,आभार आपका।
ReplyDeleteमाँ का दिल ...
ReplyDelete(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे...........
संस्मरण में रण दिखा, सुमिरन सा भावार्थ |
खड़े खड़े कुरुक्षेत्र में, होते विचलित पार्थ ?
होते विचलित पार्थ, नहीं परमारथ भूलो |
एक बार फिर आज, चरण माता के छू लो |
माता रही विराज, युगों से ईश चरण में ||
निहित मरण सा शब्द, नासवा संस्मरण में || |
आज के सेतुओं में भाव भी है तंज भी ,धिक्कार भी है .ऐंठते रहते /देखे यहाँ मक्कार .पूरी करो रविकर यार सन्दर्भ चौटाला के गुंडों का रोहिणी कोर्ट के बाहर हंगामा .
बहुत प्रवाहमयी टिप्पणियाँ!
ReplyDeleteआभार!
आपकी तो बात ही अलग है...लिंक लिक्खाड़ जी..
ReplyDeleteअच्छी लिंक्स |जय गणतंत्र |
ReplyDeleteआशा