अफ़सोस !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
रहे रिपु-दमन हैं विछा, पलक-पाँवड़े आज |
माँगे नोबुल शान्ति का, अपना सेक्युलर राज | अपना सेक्युलर राज, लाज ना आती इस को | उस दुश्मन पर नाज, सजा देनी है जिस को | दिग्गी-शिंदे साब, वहाँ इज्जत फरमाते | राज-पाट उपभोग, अभय उनसे पा जाते || |
विडम्बना !
रास आ रही रास यह, कहते जिसे लगाम |
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पदम् सम्मान : जूते घिसने से नहीं बेचने से मिलता है !
महेन्द्र श्रीवास्तव
पद्म-मीनिया भी गजब, लगते देखी रेस ।
कहीं हर्ष तो दुःख कहीं, कहीं गजब की ठेस ।
कहीं गजब की ठेस, कहीं जूतियाँ घिसाती ।
बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ।
आया पहला दौर, लगा जो शतक कीनिया ।
पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया।।
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फिल्म कथानक खेल के, आयोजक सहकार | आयोजक सहकार, अजब सा जोश भरे हैं | अपने वश में नहीं, नशें में ही विचरे हैं | युवा-वर्ग बेताब, उसे सब कुछ है पाना | बहा रहा सैलाब, उखाड़े पैर जमाना || |
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -3
सर्ग-1
भाग-3
कौशल्या-दशरथ
कुंडली
दुःख की घड़ियाँ सब गिनें, घडी घडी सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय । भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।
समय-चक्र गतिमान, घूम लाये दिन बढ़िया ।
मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ ।।
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अरे वाह!
ReplyDeleteआपका जवाब नहीं रविकर जी!
पद्म-मीनिया भी गजब, लगते देखी रेस ।
ReplyDeleteकहीं हर्ष तो दुःख कहीं, कहीं गजब की ठेस ।
कहीं गजब की ठेस, कहीं जूतियाँ घिसाती ।
बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ।
आया पहला दौर, लगा जो शतक कीनिया ।
पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया।।
बहुत खूब !
शक्ल चवन्नी छाप है, अक्ल खुली टकसाल ।
ReplyDeleteबा-शिंदे गंदे बड़े, घाल-मेल के पाल ।
घाल मेल के पाल, ताल दिग्विजयी ठोंके ।
नन्दी मालामाल, चाल चल चल के रो के ।
बड़े खरे ये लोग, नशेडी सूंघे पन्नी ।
दिखता सत्ता-योग, बनायी शक्ल चवन्नी ।।
चवन्नी भाई साहब प्रचलन से बाहर है :
शक्ल अरंडी (आक का ज़हरीला पौधा )छाप है ,
शक्ल शिखंडी छाप है ,अक्ल बेच के खाय ,
ReplyDelete.आग बलाए (लगाए )रात दिन .............................सेकुलर है ..............कहलाय .