"प्यार कहाँ से लाऊँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रस्सी पर बल हैं पड़े, रहे बलबला ऊंट |
लाल मरुस्थल हो रहे, पर कानो में खूंट | पर कानो में खूंट, नहीं जूँ रेंग रहे हैं | टूट खड्ग की मूंठ, सभी अरमान बहे हैं | शत्रु काट ले शीश, यहाँ पर दारू खस्सी | मद में सत्ताधीश, साँप को समझें रस्सी || |
शख्शियत :हिना रब्बानी खार( पाकिस्तानी मैना )
Virendra Kumar Sharma
रहे पाक गुलजार जी, रहे नियत भी नीक |
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निकला तेल जनाब का, खाना करे खराब ।
*धारु-जल=तलवार
खाना करे खराब, ताब लेकिन है बाकी ।
वालमार्ट का दाब, पड़ेगी मार बला की ।
चढ़ा रहे हैं तेल, केतु-राहु ल-खत भिश्ती ।
पानी-पानी पुश्त, भंवर में डूबे किश्ती ।।
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तो कौन सा है दर्द भारी ?
किश्तों में हैं काटते, जनता की वे जेब ।
मँहगाई गाई गई, झटक पचास फरेब ।।
सह लो फिर से यह मक्कारी ।
तो, कौन सा है दर्द भारी ?
दिल से दिल्ली दामिनी, दाग रही है धोय ।
हुवे प्रभावी मोर्चे, अँसुवन बदन भिगोय ।।
मरे नहीं, पर अत्याचारी ।
तो, कौन सा है दर्द भारी ?
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रूप-अरूपसीप की तलाश में.. पूरी होवे रश्मि की, भगवन शीघ्र तलाश | बांचे जो यह पंक्तियाँ, खोवे होश-हवाश | खोवे होश-हवाश, गजब दीवानापन है | भरे-पुरे अहसास, चलो स्वाति सावन है | मिले बूंद को सीप, रहे ना बात अधूरी | रविकर का यह तेज, बनाए मोती पूरी || |
उनके घरों में शायद न होती हैं बेटियाँ
Kailash Sharma
बेटे की टें टें सहो, नहीं *टेंट में माल ।
दाब सके नहिं **टेंटुवा, #टेंकाना दे टाल ।
टेंकाना दे टाल, माल सब हजम कर लिया ।
आँखों की हो जांच, किन्तु नहिं फ्रेम ले दिया ।
रविकर बेटी नीक, युगल परिवार समेटे ।
है संवेदनशील, मस्त अपने में बेटे ।।
*कमर के पास खोंसी हुई धोती
**गला
#सहारा
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करता हूँ मैं टिप्पणी, पढ़ कर पूरा लेख |
यहाँ लिंक लिक्खाड़ पर, जो चाहे सो देख | जो चाहे सो देख, जमा हैं यहाँ हजारों | कुछ करते नापसंद, करूं पर मैं क्या यारो | आदत से मजबूर, उन्हें जो रहा अखरता || लेकिन काम-चलाउ, कभी रविकर भी करता || |
मन का पंछी -
लव की लौ को तापता, बिता कपाती शीत | बढ़िया रचना आप की, सच्चा प्रेमी जीत | सच्चा प्रेमी जीत, मीत तू उसके मन का | आत्मीय यह प्रीत, कहीं से, नहीं बदन का | रविकर का आशीष, सकपका नहीं बहादुर | है सब में तू बीस, नहीं बरसाती दादुर || |
आदरणीय रविकर सर प्रणाम, एक से बढ़कर एक सुन्दर कुण्डलिया हैं पढ़कर आनंद आ गया, हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteख़ंज़र की क्या मजाल जो इक ज़ख़्म कर सके।
ReplyDeleteतेरा ही है ख़याल कि घायल हुआ है तू।।- स्वामी रामतीर्थ
लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं ।
आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते ?
अपनी टिप्पणियों में बहुत बढ़िया तरीके से बाँधा है आपने सभी पोस्टों को।
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteक्या कहने
वाह ... बहुत ही बढिया।
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