पदम् सम्मान : जूते घिसने से नहीं बेचने से मिलता है !
महेन्द्र श्रीवास्तव
पद्म-मीनिया भी गजब, लगते देखी रेस ।
कहीं हर्ष तो दुःख कहीं, कहीं गजब की ठेस ।
कहीं गजब की ठेस, कहीं जूतियाँ घिसाती ।
बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ।
आया पहला दौर, लगा जो शतक कीनिया ।
पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया।।
|
नन्दी मुण्डी दे हिला, चारा से इनकार ।
कोई चारा ना बचे, शिव कर भ्रष्टाचार ।
शिव कर भ्रष्टाचार, जमा कुल माल खर-चने ।
बढ़िया आशिर्वाद, चढ़ावा चढ़ा अरचने ।
किन्तु इधर प्रीतीश, लिवाले रति सी बन्दी ।
खुले तीसरा नेत्र, सहम जाता है नन्दी ।।
|
पी सी गोदियाल
रास आ रही रास यह, कहते जिसे लगाम |
सरेआम देते लगा, जब थी भीड़ तमाम |
जब थी भीड़ तमाम, जुबाँ पे लगे भला हो |
लेकिन होता दर्द, फंसा जब कहीं गला हो |
रविकर ये बंदिशें, आज तक हमें खा रहीं |
हिदायतें कुछ और, नहीं अब रास आ रहीं ||
रास आ रही रास यह, कहते जिसे लगाम |
सरेआम देते लगा, जब थी भीड़ तमाम |
जब थी भीड़ तमाम, जुबाँ पे लगे भला हो |
लेकिन होता दर्द, फंसा जब कहीं गला हो |
रविकर ये बंदिशें, आज तक हमें खा रहीं |
हिदायतें कुछ और, नहीं अब रास आ रहीं ||
सादी चर्चा : चर्चामंच-1138
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
सादी चर्चा देख-कर, आई शादी याद |
रंग-बिरंगी रोशनी, राजा सा दामाद | राजा सा दामाद , दाद देता हूँ भाई | उस शादी के बाद, करूँ अब तक भरपाई | यह सादी ही ठीक, इसी का रविकर आदी | तरह तरह के रंग, दिखाती चर्चा सादी || |
|
फिल्म कथानक खेल के, आयोजक सहकार | आयोजक सहकार, अजब सा जोश भरे हैं | अपने वश में नहीं, नशें में ही विचरे हैं | युवा-वर्ग बेताब, उसे सब कुछ है पाना | बहा रहा सैलाब, उखाड़े पैर जमाना || |
सही कहा, आजकल ऐसे सम्मान जूते घिसने से नहीं, उनपर नाक घूसने से मिलता है।
ReplyDeleteआदरणीय सर धारदार लेखनी है आपकी आपको नमन सादर.
ReplyDeleteशानदार सटीक कुंडलियाँ,,,,बधाई रविकर जी,,,
ReplyDeleteआज के बेहतरीन आलेख,सादर आभार।
ReplyDeleteSimply superb.
ReplyDeleteबेहतरीन टिप्पणियाँ!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स