Sunday, 27 January 2013

पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया-

पदम् सम्मान : जूते घिसने से नहीं बेचने से मिलता है !


महेन्द्र श्रीवास्तव 

पद्म-मीनिया भी गजब, लगते देखी रेस ।
कहीं हर्ष तो दुःख कहीं, कहीं गजब की ठेस ।
कहीं गजब की ठेस, कहीं जूतियाँ घिसाती ।
बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ।
आया पहला दौर, लगा जो शतक कीनिया ।
पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म  मीनिया।।

नन्दी मुण्डी दे हिला, चारा से इनकार ।
कोई चारा ना बचे, शिव कर भ्रष्टाचार ।

शिव कर भ्रष्टाचार, जमा कुल माल खर-चने ।
बढ़िया आशिर्वाद, चढ़ावा चढ़ा अरचने ।

किन्तु इधर प्रीतीश, लिवाले रति सी बन्दी ।
खुले तीसरा नेत्र, सहम जाता है नन्दी ।।

तेरा अहसास.......

रश्मि शर्मा 

बना बतंगड़ बात का, खुरच खुरच अहसास ।
वेग स्वांस-उच्छ्वास का,  छुवे धरा आकाश ।
छुवे धरा आकाश, काश यह मौन सँदेशा ।
पहुंचे उनके देश, हलचलें-हाल हमेशा ।
स्वप्नों का संसार, लगता रहता लंगड़ ।
मिले तार बेतार, बने ना कभी बतंगड़ ।।


My Image पी सी गोदियाल
रास आ रही रास यह, कहते जिसे लगाम |
सरेआम देते लगा, जब थी भीड़ तमाम |
जब थी भीड़ तमाम, जुबाँ पे  लगे भला हो |
लेकिन होता दर्द, फंसा जब कहीं गला हो |
रविकर ये बंदिशें, आज तक हमें खा रहीं |
हिदायतें कुछ और, नहीं अब रास आ रहीं ||


 

सादी चर्चा : चर्चामंच-1138

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
सादी चर्चा देख-कर, आई शादी याद |
रंग-बिरंगी रोशनी, राजा सा दामाद |
राजा सा दामाद , दाद देता हूँ भाई |
उस शादी के बाद, करूँ अब तक भरपाई |
यह सादी ही ठीक, इसी का रविकर आदी |
तरह तरह के रंग, दिखाती चर्चा सादी ||


"हमारा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 
शुद्ध हवा हितकर दवा, पादप के उपहार |
मानव जीवन लालची, हरपल रहा सँहार |
 
हरपल रहा सँहार, वार पर वार किये है |

काट रहा जो डाल, पैर वह वहीँ दिए है |
रे नादाँ इंसान, चेताये तुझको रविकर |
कर पौधों से प्यार, हवा होती है हितकर |


हमारे युवा आधुनिक बनना चाहते हैं या फिर दिखना चाहते हैं !!

पूरण खण्डेलवाल 

विज्ञापन मीडिया भी, औद्योगिक घरबार |
फिल्म कथानक खेल के, आयोजक सहकार |
आयोजक सहकार, अजब सा जोश भरे हैं |
अपने वश में नहीं, नशें में ही विचरे हैं |
युवा-वर्ग बेताब, उसे सब कुछ है पाना |
बहा रहा सैलाब, उखाड़े पैर जमाना || 



8 comments:

  1. सही कहा, आजकल ऐसे सम्मान जूते घिसने से नहीं, उनपर नाक घूसने से मिलता है।

    ReplyDelete
  2. आदरणीय सर धारदार लेखनी है आपकी आपको नमन सादर.

    ReplyDelete
  3. शानदार सटीक कुंडलियाँ,,,,बधाई रविकर जी,,,

    ReplyDelete
  4. आज के बेहतरीन आलेख,सादर आभार।

    ReplyDelete
  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है

    ReplyDelete