अब चिंतन दरबार, बिलौटे खातिर चिंतित -
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साँप जी साँप !
सुशील
कहाँ गये थे आप जी, हांफ हांफ कर साँप ।
देख देख के सांप को, लेते रस्ता नाप ।
लेते रस्ता नाप, सांप से बहुत डरे है ।
कहते हैं कुछ मित्र, यहाँ भी बड़े भरे हैं ।
लेकिन जहर विहीन, जान के इनके लाले ।
रहे नेवले देख, बनाते इन्हें निवाले ।।
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मीडिया: क्या वाकई देश के हर तबके कि आवाज है !!
ना ना ना बिलकुल नहीं, कुल-संकुल का संग |
कहीं-कहीं पर तो दिखे, हरदम सत्ता संग |
हरदम सत्ता संग, मीडिया हित व्यापारिक |
भिन्न भिन्न हैं रंग, रोग सारे सांसारिक |
ढूंढे दाना-दान, कहीं डाले हैं दाना |
अपने मन की ठान, बढ़े मीडिया घराना |
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*चिंजा - चिंजी वास्ते, चिंतन-तन अनुराग-
*चिंजा - चिंजी वास्ते, चिंतन-तन अनुराग ।
नंबर दो तो रहा ही, दो हित कर खटराग ।
दो हित कर खटराग, आग अब अटल बिहारी ।
जब मुंडेर पर काग, कुँवारा मुंडा भारी ।
दो मत इतना बोझ, कहीं ना होवे गंजा ।
करो कर्म यह सोझ, ब्याह माँ अपना चिंजा ।।
*चिंजा - चिंजी=बेटा -बेटी
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घोंघा
देवेन्द्र पाण्डेय
यत्र-तत्र घुसपैठ कर, कवच-सुरक्षा ओढ़ | कवच-सुरक्षा ओढ़, चढ़ा है रंग बसंती | वय हो जाती गौण, रचूँ मैं एक तुरंती | यह है सुख का मूल, चला चल धीमा धीमा | घोंघा बने उसूल, चैन की फिर क्या सीमा ??
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लिंक लिखाड़ में वैसे तो सभी लिंक अच्छे हैं लेकिन अलबेला खत्रीजी कि काव्य रचना कि बात ही कुछ और है !!
ReplyDeleteआदरणीय रविकर सर प्रणाम, एक से बढ़कर एक सुन्दर कुण्डलिया पढ़ते-पढ़ते सुधबुध खो गई हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
आभारी हूँ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है व्यंग्य भी तंज भी .
ReplyDeleteहुल्लड़ होता है हटकु, *हालाहली हलोर ।
हुई सुमाता खुश बहुत, कब से रही अगोर ।
कब से रही अगोर, हुआ बबलू अब लायक ।
हर्षित दिग्गी-द्रोण, सौंप के सारे ^शायक ।
नीति नियम कुल सीख, करेगा अब ना फाउल ।
सब विधि लायक दीख, आह! दुनिया को राहुल ।।
*दारू ^तीर
आपका श्रम सराहनीय है!
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