ZEAL
पंजा-वाले से भला, खुरवाला खुद्दार ।
परम्परागत चाल से, करे जाति-उद्धार ।
करे जाति-उद्धार, उगाये पद्म जलाशय ।
चाँद-सितारे नहीं, तोड़ता बूझ महाशय ।
गंगा गीता गाय, पूजता काट शिकंजा ।
छक्का पंजा करे, सदा ही खूनी पंजा ।।
Virendra Kumar Sharma
काबुल में करता रहा, तालिबान विध्वंस |
मुख्य विपक्षी है वहाँ, लगातार दे दंश | लगातार दे डंस, बड़ा आतंकी दल है | लांछित भाजप किन्तु, राष्ट्र का बल-सम्बल है | फिर भी तुम बेचैन, बहुत हो जाते व्याकुल | अंड-बंड बकवास, बनाना चाहो काबुल || |
सावधान रहने का समय है !
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
हाथ-पैर में बल पड़े, शुरू देह में खाज |
सैनिक सेनापति खड़े, गिरे जहर की गाज |
गिरे जहर की गाज, अजब चित्रण है भाई |
फिर भी है संतोष, करें केवल उबकाई |
चलें शब्द के तीर, मीर जो मारे पहले |
जन-गण-मन को चीर, मार नहले पे दहले ||
हाथ-पैर में बल पड़े, शुरू देह में खाज |
सैनिक सेनापति खड़े, गिरे जहर की गाज |
गिरे जहर की गाज, अजब चित्रण है भाई |
फिर भी है संतोष, करें केवल उबकाई |
चलें शब्द के तीर, मीर जो मारे पहले |
जन-गण-मन को चीर, मार नहले पे दहले ||
खांटी दीदी गिरी है, रहे मौन सरदार-
हिंदी की चिंदी करे, हिन्दू की तौहीन |
गंदे-बा-शिन्दे बहुत, दुनिया करे यकीन | दुनिया करे यकीन, एक मंत्री जब बोले |
यह-आतंकी-देश, लिस्ट में शामिल हो ले |
दिला रही है अभय, चाटुकारों को थ्योरी | हटे नाम हिट-लिस्ट, मरें अब नहीं अघोरी || |
खुर-पशु और पंजा-तंत्र !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
लीडर की करते नक़ल, भेड़-चाल में लीन ।
विल्डबीस्ट खुर-पशु सदा, लगते बुद्धि विहीन ।
लगते बुद्धि विहीन, जुबाँ लम्बी है लेकिन ।
हुआ गरदुआ रोग, करे खुरचाली हर-दिन ।
खुराफात खुर्राट, खुरखुरा मानव रविकर ।
खड़ी-खाट खटराग, किन्तु बढ़िया है लीडर ।।
खुरचाली = बुरा आचरण
पैना पड़ता पीठ पर , लेकिन चमड़ी मोट ।
दमड़ी दमड़ी लुट गई, सहता रहता चोट ।
फोटो खिंचा रहा अनशन में ।
पैनापन तलवार सा, कैंची कतरे कान ।
सुन लो बात वजीर की, होता जो हैरान-
आग लगे उस नश्वर तन में ।।
बा-शिंदे चाहे मरें, कांगरेस परिवार ।
अव्वल रहते रेस में, शत्रु दलों को मार -
यही इण्डिया, रहें वतन में ।।
गडके-करी समेत धन, पता पता नहिं मित्र ।
छापे पड़ने लगे जब, हालत हुई विचित्र -
बदल गया निर्णय फिर क्षण में ।।
बाप-पूत अन्दर गए, शिक्षक आये याद ।
दो दो मिल सोलह करे, शिक्षा हो बरबाद -
हरियाणा में किस्सा जन्में ।।
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श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (४४वीं कड़ी)
Kailash Sharma
रूप दिव्यतम देखते, रोमांचित हैं पार्थ |
अनंत रूप जीवन विषद, दिखते अनंत पदार्थ |
दिखते अनंत पदार्थ , प्रभावी भक्तिमई है |
कथा प्रवाह अनंत, लिखे सोपान कई हैं |
माँ शारद का वास, रूप यह दिखा सरलतम |
शिल्प-कथ्य है श्रेष्ठ, कृष्ण का रूप-दिव्यतम ||
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
आदरणीय सर प्रणाम, बेहद सुन्दर रचनायें हैं पढ़कर कर शांति की प्राप्ति हुई, हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteकाबुल में करता रहा, तालिबान विध्वंस |
ReplyDeleteमुख्य विपक्षी है वहाँ, लगातार दे डंस |
लगातार दे डंस............(दंश ).............., बड़ा आतंकी दल है |
लांछित भाजप किन्तु, राष्ट्र का बल-सम्बल है |
फिर भी तुम बेचैन, बहुत हो जाते व्याकुल |
अंड-बंड बकवास, बनाना चाहो काबुल ||
बहुत सटीक टिपण्णी सरजी .
आभार रविकर जी इस प्रस्तुति के लिए !
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुतिकरण के सादर आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर धार दार टिप्पणियां...
ReplyDelete...नहीं दिल्लगी है भली,सदा हमारे साथ,
ReplyDeleteठूँस जेल में भरेंगे,लम्बे मेरे हाथ :-)
मुझे तो आपकी तस्वीर बड़ी जम रही है। :)
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