नारा ढीला हो गया, निन्यानवे बटेर-
नारा ढीला हो गया, निन्यानवे बटेर |
पहुँचायें सत्ता सही, चाहे देर सवेर |
चाहे देर सवेर, गरीबी रेखा वालों |
फँसता मध्यम वर्ग, साथ अब इन्हें बुला लो |
मँहगाई की मार, टैक्स ने भी संहारा |
लाल-कार्ड बनवाय, लगायें हम भी नारा |
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सोये आतंकी पड़े, छाये भाजप संघ |
आरोपी तैयार है, आओ सीमा लंघ ||
जैसे मन वैसे संहारो ||
पेट फटे नक्सल लटे, डटे बढे उन्माद |
गले कटे भारत बटे, लो आंसू पर दाद |
खाली कुर्सी चलो पधारो ||
चालीसवां दामिनी का, निकले आंसू आज |
कैसा यह चिंतन सखे, आस्कर इन्हें नवाज |
चालू है नौटंकी यारो ||
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है वजीर यह पिलपिला, पिला-पिला के पैग-
है वजीर यह पिलपिला, पिला-पिला के पैग ।
पैदल-कुल बकवा रहे , दे आतंकी टैग -
फिर से नई विसात बिछाये ।
देश-भक्त कहलाता जाए ।।
देश गलतियाँ भुगतता, हर पीढ़ी की चार ।
रोज गर्त में जा रहा, जिम्मा ले परिवार ।
नए नए नारे बहकाए ।
देश-भक्त कहलाता जाए ।।
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अब चिंतन दरबार, बिलौटे खातिर चिंतित -
मणि-मस्तक शंकर चढ़े, अयप्पा के द्वार ।
कुत्ते बिल्ली से लड़ें, बागडोर सरकार ।
बागडोर सरकार, मगर कुत्ते हैं हारे ।
म्याऊँ बारम्बार, जीत करके हुंकारे ।
अब चिंतन दरबार, बिलौटे खातिर चिंतित ।
करे आर या पार, शक्ति म्याऊँ अभिसिंचित ।।
चिंतन शिविर हमारी खातिर -
संसाधन नीलाम हों, मनु-मिनरल-फारेस्ट ।
करें विदेशी मस्तियाँ, बन सत्ता के गेस्ट ।
करते पिकनिक चन्दन घिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ?
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माँ ने कहा सत्ता जहर की तरह है, और भारत के लोग मेरी जान है:- राहुल गांधीअंधड़ !
जहरखुरानी में मरें, होवे एक्सीडेंट |
जोखिम में यह जान है, उखड़े तम्बू टेंट | उखड़े तम्बू टेंट, रेंट की खातिर बन्दे | बिन मांगे मिल जाए, झोलियाँ भर भर चंदे | जनता माँ की जान, जहर सी सत्ता रानी | दे बेटे को सौंप, होय ना जहर-खुरानी || हिन्दु-वाद-आतंक, शब्द लगते हैं मारक-
मिली मुबारकवाद मकु, मणि शंकर अय्यार ।
शिंदे फर्द-बयान से, जाते पलटी मार ।
जाते पलटी मार , भतीजा होता है खुश।
नकारात्मक वार, कभी हो जाता दुर्धुष ।
हिन्दु-वाद-आतंक, शब्द लगते हैं मारक ।
हर्षित फूंके शंख, मित्र से मिली मुबारक ।। |
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