सुदर्शन आदर्श संन्यासी युवा
Kulwant Happy
जिए विवेकानंद जी, कुल उन्तालिस वर्ष ।
हुवे डेढ़ सौ वर्ष हैं, उत्सव मने सहर्ष ।
उत्सव मने सहर्ष, युवा भारत सन्यासी ।
वाणी सहज प्रभाव, आत्मा तृप्ते प्यासी ।
एक एक सन्देश, आज से पुन: मांजिये ।
भारत माता पूज, चित्र कुल भव्य साजिए ।
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चर्चा करो मगर कैसे और किसकी ?
vandana gupta
करो विवेकानंद की, चर्चा मेरे मित्र |
युवा वर्ग के हृदय में, होय स्थापित चित्र | होय स्थापित चित्र, ढेढ़ सौ साल हो रहे | प्रासंगिक है सीख, समय समय पर जो कहे | हे भारत के युवा, देश को अब मत अखरो | पूरे कर कर्तव्य, शपथ लेकर मत मुकरो | |
सत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत | बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है | फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है | कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था | मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा || |
सी बी आई ली पकड़, नाई जब्त गुलेल।
गुप्ता जी की डायरी, दे मुश्किल में ठेल ।
दे मुश्किल में ठेल, जांच हो रही भयंकर।
किससे किससे मेल, बोल दे क्या है चक्कर ।
सुनते स्विस हर बाल , खड़ा सीधा हो जाता ।
आसानी से तभी, जानिये बाल कटाता ।।
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पैमाने में भरकर अलसाये दर्द को, इस तरह न छलकाया करो..
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंतर्मन में ऐक्य है, तनातनी तन माय |
प्यारी सी यह गजल दे, फिर से आग लगाय | फिर से आग लगाय, बुलाना नहीं गवारा | रहा खुद-ब-खुद धाय, छोड़ के धंधा सारा | आँखों में इनकार, मगर सुरसुरी बदन में | रविकर कर बर्दाश्त, आज जो अंतर्मन में || |
मिथ या यथार्थ ? मोटे अनाज हमेशा अच्छे ?
Virendra Kumar Sharma
साजे गोला ऊन का, गुड़ का बनता पाग |
तिलकुट मोटा बाजरा, ज्वार चना कुल भाग | ज्वार चना कुल भाग, ठण्ड तो बाघ बन रही | एक आसरा आग, जला के होय बतकही | दादा दादी कहाँ, सुनाते किस्से ताजे | लट्टू कंचा गोल, हाथ मोबाइल साजे || |
सीमा पर उत्पात हो, शत्रु देश का हाथ ।
फेल खूफिया तंत्र है, कटते सैनिक माथ ।
कटते सैनिक माथ, रहे पर सत्ता सोई ।
रचि राखा जो राम, वही दुर्घटना होई ।
इत नक्सल आतंक, पुलिस का करती कीमा ।
पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा ।।
शब्दों से आक्रोश को, व्यक्त करे आकाश । देश रसातल में धंसे, देख लाल की लाश । देख लाल की लाश, अनर्गल बकती सत्ता । लेकिन पाकी फांस, घुसे हरदम अलबत्ता । इत नक्सल दुर्दांत, उधर आतंकी पोसे । करिए अब तो क्रान्ति, भावना से शब्दों से ।। पाकी सिर काटे अगर, व्यक्त सही आक्रोश ।
मरे पुलिस के पेट में, नक्सल दे बम खोंस ।
नक्सल दे बम खोंस, आधुनिक विस्फोटक से ।
करे धमाका ठोस, दुबारा पूरे हक़ से ।
अन्दर बाहर शत्रु, बताओ अब क्या बाकी ।
नक्सल पीछे कहाँ, तनिक आगे है पाकी ।।
पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस ।
उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी ।
सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी ।
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी ।
सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।।
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लेख लिखाते ढेर से, पढ़िए सहज उपाय ।
रेप केस में सेक्स ही, पूरा बदला जाय ।
पूरा बदला जाय, भ्रूण हत्या से बचकर ।
भेदभाव से उबर, करे सर्विस जब पढ़कर ।
दुर्जन से घबराय, छोड़ दिल्ली जो जाते ।
भरपाई हो मित्र, रहो फिर लेख लिखाते ।।
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"पत्थर दिल कब पिघलेंगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')आई मौनी अमाँ है, तमा तमीचर तीर | नारी मरती सड़क पर, सीमा पर बलवीर | सीमा पर बलवीर, देश में अफरा तफरी | सत्ता की तफरीह, जेब लोगों की कतरी | बेलगाम है लूट, समंदर पार कमाई | ढूँढ़ दूज का चाँद, अमाँ यह लम्बी आई || |
बढिया लिंक्स
ReplyDeleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-12-2013) को (मोटे अनाज हमेशा अच्छे) चर्चा मंच-1123 पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको मकर संक्राति की बधाई।
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